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252525252595 fazugoucna Y59595252525
गंधर्वा करे भूताक्ष करे भूताक्ष करे, पिशाचक्ष करे-पिशाचक्ष करे, राक्षसकरेराक्षस करे, साधू राक्षस करे, साधु राक्षस करे, सर्वाक्ष करे, सर्वाक्ष करे गवाक्ष करे, पिंगलाक्षकरे पिंगलाक्ष करे, कनाताक्ष करे कमाताक्ष करे गुंजाक्षकरे गुंजाक्षकरे मंडलाक्ष करे मंडलाक्ष करे, युद्धाक्ष करे युद्धाक्ष करे, दक्ष करे दक्षकरे, धरयु धरयु, धर-धर तव तव हुत-हुत सुच सुच भूत-भूत, पुष्प-पुष्प दुष्ट-दुष्ट, महादुष्ट-महादुष्ट ग्रहदुष्ट- ग्रहदुष्ट, पर पर, हर हर, भर-भर गरुडावाहिनी हरु हुरु शनि फट फट हुं फट ह्रीं हुं फट चारण तीर्थंकरेभ्य स्वाहा ॥
द्वादश सहस्र जापात् होमाचायं प्रसाधितः कुर्यात, केवल तीर्थकख्यो मंत्रः सर्वाणि कार्याणि
॥ १ ॥
अष्टोत्तर शत जपतः स्वकर तलान्योन्य ताडनं ग्रह शांति शत्रुक्षयं च कुरुते मसुरिकां हरति भस्म जंतु कृज्जप्तं ॥ २ ॥
तन्मंत्रित: मुडिकादि व्याधीन सर्वान सणाशपीतं तज्जसाः संस्पृष्टाः पुष्पंति फलांति च द्रुम लताद्याः
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तन्मंत्रितः सिकता कृत परिवृत्ति सं रक्षिते भाग मूषक मूषिक विषधर शार्दूलाद्यै परिहियंते
॥ ४ ॥
यह केवली तीर्थंकर मंत्र बारह हजार जाप और होम से सिद्ध होता है। और सब कार्यों को करताहै। यह मंत्र १०८ बार जपकर हथेली बजाने से ग्रहों की शांति तथा शत्रु का नाश करता है। इस मंत्र से जपी हुई भस्म को देने से मसूरिका (शीतला) दूर होती है।
इस मंत्र से मंत्रित जल को पीने से सर्वरोग नष्ट होते हैं इस मंत्र को जपकर छूने से वृक्ष लता आदि पर फल फूल आने लगते हैं।
इस मंत्र से जपी हुई बालू को मार्ग में अपने चारों तरफ ड़ालकर मार्ग की रक्षा करने से चूहे, सर्प और सिंह आदि मार्ग से भाग जाते हैं।
ॐ नमो भगवते अरहंत सिद्ध आईरिय उवज्झाया साधु रक्षा चतुर्विशंति तीर्थकर रक्षा ब्रह्मा रक्षा विष्णु रक्षा क्षेत्र शत कोटि पिशाच रक्षा त्रिटा स्त्रिंश दिद्रं रक्षा ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः क्षां क्षीं क्षं क्षीं क्षः स्वाहा ॥
0525252525252: *• PSY525
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