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________________ 95959595 विद्यानुशासन 9595955 प्रकाशित हो जाती हैं। यह सब अनंतादि महानाग भगवान पार्श्वनाथ को अपना स्वामी मानते हुये उनके अनुचर होते हैं। इनमें से अथवा किसी भी नाग से इसे जाने पर जो दूत नाग इसे जाने का समाचार लाता हो उसकी पीठ में ॐ ह्रीं ला ह्नः पः लक्ष्मी स्वाहा इस मंत्र का ध्यान करके क्रम से पृथ्वी मंडल, वायु, अग्नि मंडल का ध्यान करके क्रम से पृथ्वी मंडल, अग्नि मंडल, का ध्यान करें | अर्थात् वह ध्यान इस प्रकार हो और फिर हँसे हुए हृदय में हंसः पद का ध्यान करे यदि इस क्रिया से हँसे हुए पुरुष की गर्दन आदि अंग फड़कने लगे तो संग्रह अर्थात् उसको बचने वाला जानना चाहिये, और यदि हंसः का ध्यान जो हृदय में हँसे हुए के किया गया है, इस क्रिया से उसका कोई भी अंग न फड़के तो उसको असंग्रह अर्थात् अवश्य मरने वाला समझना चाहिये । साथ ही साथ श्री पार्श्वनाथ भट्टारक के सामने पवित्र स्थान में बैठकर एक अष्टदल कमल की कर्णिका में " पार्श्वनाथाय नमः" इस पद को सुगंधित द्रव्यों से लिखकर तथा उस कर्णिका में लिखे हुए इस पद में हैं से वेष्टित करके पूर्व आदि के पत्रों में ह्रीं कार आदि आठ अक्षरों में मंत्र को लिखकर तीन बार ह्रीं से वेष्टित करके उसे बाहर आदि में ॐ तथा अंत में स्वाहा लगाकर जयाय विजयाय पदों को लिखे, इसके बाहर आदि में ॐ और अंत में स्वाहा लगाकर अनंताय तक्षकाय पह्याय कर्कोटकाय महापद्माय शंखपालाय वासुकाय और कुलिकाय पदों को लिखे। इसके पश्चात विधिपूर्वक 'ॐ ह्री ला ह्वः पः लक्ष्मीं इवीं क्ष्वीं खुः स्वाहा' इस मंत्र का कनेर के फूलों से बारह हजार जप और बारह सौ बार हवन में आहुति दें। इस विधि से यह मंत्र सिद्ध होता है । 'ॐ ह्रीं ला हृपः लक्ष्मीं चल चल चालय चालय स्वाहा' यह शाकिनी निग्रह मंत्र है । उपरोक्त मंत्र को सिद्ध करके प्रतिदिन अभ्यास करते रहने से डँसे हुए पुरुष के आने का समाचार स्वप्न में विदित हो जाता है तथा दूत के आने पर उस समय नाड़ी का रहना या जाना पूर्णरिक्त शीतोष्ण आदि अपने सद्भाव नष्ट चन्द्रयोग कुलिक योग उपकुलिक योग पापग्रहों के उदय आदि स्वयं ही विदित हो जाते हैं। फिर दूत के अच्छे या बुरेपने तथा नक्षत्र आदि को जानकर जाते हुवे मार्ग में ही उस दूत की पीठ में पूर्वोक्त तीनों मंडलों का न्यास करने और मंत्र का ध्यान करने पर जिस समय वह दूत मंडल के मार्ग में आगे बैठे और पीछे न देखें उस समय संग्रह अर्थात् डँसे हुवे के बचने की पूरी आशा जाने । अन्यथा असंग्रह जाने उस हँसे हुवे पुरुष के हृदय में हंसः शब्द कान गर्दन और दृष्टि में ई वं क्षः मंत्र दांत और नाखूनों की छाया में वं हंसः मंत्र लगावे इस प्रकार दसोस्थानों के सब अवयवों के सब अवयवों की परीक्षा से संग्रह और असंग्रह जाने । 959695959595 ११७ P5959595969595
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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