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51 विधानुशासन 9/59/59595259
पहले पहल हुई रजस्वला के रज से श्मशान की अग्रि में गृहपति (घर के स्वामी) मनुष्य के मस्तक के किनारे पर लगी हुई कुनटी (मंनसिल) को पीसकर, उस सफेद कमल के तन्तु से लपेट कर उसको बत्ती को कटु तेल (कड़वे तेल) के दीप में जलाकर, उससे बनाए हुए काजल को आंख में लगाने से मनुष्य अदृश्य हो जाता है।
यध्वाक्षस्य सित तरस्य महिषि तकोत्थ मुक्ते सकृत. तेनाभ्यक्त सिताऽर्कतूल दशया युक्तेन सुस्निग्धाया क्लप्तं प्रेतरं कपालयुगले प्रेताल कज्जलं. नो शक्तं वितनोत्यदृश्य तनुक्ता मर्तस्य देवैरपि
॥५६॥
मरे हुए असित ध्वांक्ष (काले कौए) को भैंस की मठ्ठे से निकले घृत में भिगोकर उसको सितार्क ( सफेद आक ) की तूल (रुई) में लपेट कर दशा ( दीपक की बत्ती) बनाकर सुरिमग्धया (चिकनाई = घृत सहित ) ( प्रेतनर कपाल युगले) मरे हुए दो आदमियों के कपालों में (प्रेतालय) श्मशान में (क्लतं) बनाए हुए कञ्चल को आंजने वाले पुरुष को (मर्त) (आदमी) और देवता भी नहीं देख सकते हैं ।
नने दो हणे तगर जटात्ता कुबेर दिशि संभूता,
लोह प्रयमध्यगता वितरति तृणामद्रश्यतां मुख निहिताः ॥ ५७ ॥
(इन्दो ग्रहण) चंद्रग्रहण के समय उत्तर दिशा में (संभूता) () पैदा हुई) उगी हुई तगर वृक्ष की (जटा) जड़ को नग्न होकर लाए फिर यदि उसको त्रिलोह (तास १२ तार चांदी = १६ सुवर्ण = ३ भाग) के जंतर में जड़वाकर मुख में रखे तो अदृश्य हो जाए।
चित्तविन्ह दग्धभूत द्रुम यम शाखा मर्षां समाहृत्य अंकोल तैल सूतक कृष्ण विज्ञाला जरायुश्च
॥ ५८ ॥
धूक नयनांबू मर्द्दित गुटिकां कृत्वा त्रिलोह संमठितां धृत्वा तां मात्म मुरये पुरुषोऽदृष्यत्वमायाति
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चिता की अग्रि में जले हुए (भूत द्रम) नागरमोथा और (यम द्रुम शाखा) संभल की पेड़ की शाखा की भस्म (समाहृत्य) इक्कठी करके उसको (अंकोल) ढेरे के तेल (सूतक) पारा और काले बिलाव की जरायु और उल्लु की आंख का पानी से घोटकर उसकी गोली बनाकर त्रिलोह (तांबा १२, चांदी १६, सोना ३ भाग) को जंतर में मढ़वाकर मुँह में रखने से पुरुष अदृश्य हो जाता है।
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