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________________ PSPSPSPSPSS विधानुशासन 97595905959595 अपने इष्ट कार्य का ध्यान करते हुए शरीर पर गाय के गोबर का लेप करके श्वास को रोक कर अभ्यास करते हुए जल में भी गोता लगा सकता है। निधायाऽभ्यांतरे दंष्ट्रा डुंडु भस्याऽतरा निधे, अगाधे पिजले तिष्टे निमज्य सुचिरं नरः 1188 11 मुँह में डाढ़ के नीचे दर की मणि को दबाकर समुन्द्र के अगाध जल में भी चिरकाल तक गोता लगा कर बैठे। लिप्तं यस्य द्दगाद्यं कपिला ज्येन क्षुरास्थिर जसा, चासौब्धौ निमज्यं संवौषट् रुपाधर्थानुया दद्यात् ॥ ५० ॥ जो कपिला गाय के और क्षुरारिथ (गोखरू) के चूर्ण का नेत्र आदि पर लेप करके संवौषट् बोलता हुआ कैसे ही समुंद्र में जा सकता है। गोबर मिले गोमय विमिश्रिताभिर्विधूर्वितानि प्रपूरितादद्भिः वरंध्रादपि कुयाद्भीतः स्तोकमऽपि गलति ॥ ५१ ॥ हुए विधूर्णित जल से भरे हुए बहुत छेदों वाले घड़े से जरा सा भी जल नहीं गिरता है । सधूमें प्रज्वलत्यग्नौ घट स्वोदर यंत्रिते, अद्यः स्थापित वक्रोपि सध्वनिः सलिलं पिवेत् ॥ ५२ ॥ धुंए सहित जलती हुई अनि के उपर घड़े को रखकर जल के ऊपर उल्टा रखने से घड़ा शब्द करता हुआ जल को पी जाता है। श्मशान वासिनि प्रेत मालिनि सामां पश्यंतु मनष्याः ठः ठः सिद्धेन लक्ष जाप्यात् कालि मंत्रेण यच्चिता भसितं, जप्तं तत कृत तिलकः पुमान् द्दश्यत्व मा याति 114311 इस काली मंत्र को एक लाख जप से सिद्ध करके इससे अभिमंत्रित की हुई चिता की भस्म का तिलक लगाने से पुरुष अदृश्य हो जाता है। प्रथमं रजस्वालायः कन्यायाः पितृ बनाएनौ, रजसा पिष्टा गृहपति नरं ललाट तट मध्यगा कुनटी 114811 दीपात कट तैलाक़ात् सित सरसिज सूत्र नित्र निकर कृत वर्तेः, आर्तेना ताक्षि युगोन दृश्यते कज्जलेन नरः ॥ ५५ ॥ 9696969599१०८७P/5959596959
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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