SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1091
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ CSIRISTRICISTOISIS विधानुशासन SHEIRECSIRISROSCISI घत मिक्त सूत्र वेष्टित स्पष्टाया: पचति कंसमय पाया, अंतःस्थितान हुताशः सद्काद्या नतु दहे त्सूत्रं ॥३६ ।। घृत में सिके हुए धागे से लपेटे हुए स्पृही (कटेरी) स्पृष्ट (छूना) (पृष्टी-पृष्टाणी) को कांसी के बर्तन में रखकर पकाए हुए शदकं (अन्नादिक) को आग नहीं जला सकती है और न धागे को ही जला सकती है। लाक्षिक तंतु पुटेऽनि पषाक्त तिलोद्रेव पचेत्कारये - पात्रे पायसमऽन्नं सूत्रं तु वहिर्गनंनदहेत ॥३७॥ लाख के धागे से पुट दिए हुए और तिल के तेल से पुते हुए कांसी के बर्तन में पकाई हुई खीर अग्नि से नहीं पकती है और न ही धागा जलता है। दले विशाले भूजस्य ज्वलज्वालेनवन्हिना, लोह मांड दया पूपान साधयेत तैलपूरित ॥३८॥ (विशाला=इंद्रायण) भोजपत्र के बड़े भारी पत्तों में लोह के कठारी की तरह तेल भरकर अग्नि से गरम करके पूर्व उतारे। तैलेनऽषणेन वासित यायत् सूत्रेण वेष्टितं, याांक स्यफलं वन्हि ईहेत् सूत्रनभस्मयेत् ॥३९॥ उस गरम तेल में भिगोये हुए धागे से वार्ताक (केटली के फल को लपेट कर अमि पर रखने से फल तथा धागा नहीं जलता) कंस पात्रे कठोरस्य तप्यमाने रवः करैः, क्षिप्तं तूलं ज्वलेपारा श्रुक गोमयजं रजः ॥४०॥ सूर्य की किरणों से बहुत जोर से तपते रहने पर कांसी के बर्तन में रखी हुई तूल (रुई) को शुक्र (सिरस) और गोमय (गाय को गोबर) के चूर्ण से लेप करके स्नक क्षीर भावितैः सार्द्ध विशदैःशालि तंदलैः कंस पात्रे स्थितं दुग्ध काचेत् तप्तमि नांशुक्षिः ॥४१॥ सुक क्षीर (थोहर का दूध) में भावना दिये हुए बहुत से विशद (सफेद) साठी चावलों को कांसी के बर्तन में रखकर सूर्य की किरणों से तपाकर क्वाथ बनाए। ॥४२॥ सर्याऽक्षरात्य मूर्द्ध प्रोतान भूत वाम हस्त तले, सुर चापामि न्यसेत् प्रोगेव सुसंधितं विधिवत् SSCISODEISCIEPISIPATROL PROICTICISIOISTRIEPISCESS
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy