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C5215015251525 विद्यानुशासन ASTRISTRISIODOISSIST
मातं रेफ वटा षट् चतुर्दश कलान्वितं विंदु वह्नि । पुरस्यांतरं चिलिरवेत् पाशांकुश माये
गज वृषभदंत सरिटुभय नीर वल्मीक चकी कर मत्सना । कृत्वा वनितांग मलैः स्त्री रूपं सिक्ये क्तेन समं ॥४॥
सुरभि द्रव्यै भूज्ज विलिरब्यं तानिक्षेपे चतत हृदये। शिरिव कुंडाज्य स्त्वेक तस्योपरि वंध्टोदेक
सिद्धालयस्थ रखर्पर युग्मे प्रविलिव्य नाम युत यंत्रं कुडस्थ रूपपार्क स्थितये संस्थापये त्पश्चात्
बहुभि धान्यः राय लवण तापजाम पुतैः । पात्रै ष्टिाकृष्टिंक्षी मंत्रेण वाद्वन्यात्
॥७॥
ॐआं क्रों ही अंबालिके यक्ष देवी यूँ ब्लें ही ब्लें ही ब्लें ररररां रां नित्यों दिलने मद द्रवे मनातुरे अमुकी माकर्षट माकर्षय ह्रीं संयौषट् ।
दो रेफ (र) संहित छठी और चौदहवी कला(ॐ) औ तथा बिन्दु (अनुस्वार) सहित दो मांत (दो य) लिखकर अग्नि मंडल के पश्चात पाश (आं) अंकुश (क्रो) माया (ह्रीं) को लिखे हायी दांत, बेल के दांत, नदी के दोनों किनारे की मिट्टी वल्मीकि (सर्प की बांबी) चक्रकर (कुम्हार) के हाथ की मृत्सना (मिट्टी) और स्त्री के अंग के मलों औकर स्किथक (भोम) से स्त्री का रूप सब बराबर लेकर बनावे । इस यंत्र को सुगंधित द्रव्यों से भोजपत्र पर लिखकर एक यंत्र उसके हृदय एक अग्नि कुंड के नीचे और एक उस मूर्ति के ऊपर बांध दें। सिद्धालय (श्मशान) में पड़े हुए खपरों जाम सहित यंत्रों को लिखकर होमकुंड के दोनों पार्श्व (बगल ) तरफ में इनकी स्थापना कर देवे। बहुत से धान्य सरसों नमक और घत का अपने नाम सहित यक्षी मंत्र से होम करे तो अपनी स्त्री इच्छित का आकर्षण होता है।
SEISTRISTRISTOTSTRISTOR०६६ PISTRISTOTHRASIC505051