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9595952952575 विद्यानुशासन 9595959/SPSPS
ॐ आं कों ह्रीं अंबे अंबाले अंबिके यक्ष देवि यूं ब्लूं ह्स्क्ली ब्लूं ह्सौ रः रः रः रः रां रां नित्यक्लिन्ये मद द्रवे मदनातुरे ह्रीं क्रों अमुकीं मम वश्या कृष्टिं कुरू कुरू संवोषट् ।
तत्तांबूल रसेन कनक रस ब्रह्मादिभि, संयुक्त प्रेता वासा खप्परप्रति मापत्रे अथवा अंगारैः खदिरोद्रवेः प्रतिदिनं संध्यासु. संतापद्येत्सप्तो वनितां मनोभिलषिता मंत्रा छटाद्दानयेत् ॥ १३ ॥
दो रेफ सहित दो मांत (य) को छटे स्वर (ॐ) और चौदहवें स्वर (औ) और विन्दु (अनुस्वार) सहित लिखकर उसके बाहर तीन अग्नि मंडल लिखे, उसके अंदर पाश (आं) त्रिमूर्ति) ह्रीं) और गजवश कर अक्षर (क्रौं) से वेष्टित करे। अग्निमंडल) (हिरण्यरेतस) के पश्चात् मंत्र से वेष्टित करे फिर अग्निमंडल और वायुमंडल बनावे | इस यंत्र को तांबूल (पान) के रस से धतूरे के रस से ब्रह्म (पलाश) के रस से श्मशान के या खपर ताम्रपत्र पर लिखकर प्रतिदिन संध्या के समय खदिर (खेर) के अंगारो (कोयले) पर तपाने से इच्छित स्त्री का एक सप्ताह के अंदर आकर्षण होता है ।
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