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________________ CASESSISTRIDIODIO विधान THIOI5050SRIRAMES नाम नाम त्रिमूर्ति मध्ठास्थंकों यली दिसु विदिसु चबहि, वन्हियुतं कोष्टे जंभे होमांत मा लिप्येत् ॥१८२ ॥ मोहापि तथा ग्रांतं ब्रह्म ढलेकार मास्थितं ॐ ब्लें धात्रे वषट् वेष्टयं तद्वाह्ये क्षिति मंडलं ॥१८३॥ फलके भूज्ज ताम्र पत्रे या लिरियत्या कुंकुमादिभिः पूजये यः सदा यंत्रं तस्य सर्व जगवश ।।१८४ ॥ नाम को त्रिमूर्ति (ही) के बीच में लिराकर उसकी दिशाओं में क्रों और विदिशाओं में क्लीं लिखे, बाहर अग्नि मंडल सहित आठ कोठों में ॐ और स्वाहा सहित जंभा आदि देवियों के नाम लिखे फिर ब्रह्म (ॐ) और ब्लू सहित मोह आदि को लिखे बाहर (ॐ) ब्लें धाने वषट् लिखे और उसके बाहर पृथ्वी मंडल बनाये। इस यंत्र को केशर आदि से तख्ती या तास पत्र या भोजपत्र पर लिखकर जो सदा पूजन करता है सम्पूर्ण जगत उसके वश में रहता है | CASOI50151015015015105१०२९P51015315015105701595
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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