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मध्य रात्रं शरत्काल प्रत्यूषं च हिमं विदुः
घटिका दशभुंजंति प्रत्येकं ते दिनोदयात्
॥ २६ ॥
मध्यरात्री को शरद ऋतु और प्रातःकाल को हिम या हेमन्तऋतु कहते हैं। यह सभी ऋतुएं दिन के उदय होने से दस दस घड़ी तक रहती है।
आकर्षण वसंतस्या ग्रीष्मे विद्वेषणं कुरु प्रावृटयुच्चाटनं कर्म शिशिरे मारणं तथा
शरत्सु शांतिकं कुर्यादुहेमंते पौष्टिकं क्रिया ज्ञात्वा स्वकाल बेलायां सर्वकर्माणि कारयेत्
॥ २८ ॥
आकर्षण को वसंत ऋतु में, विद्वेषण ग्रीष्म में, उच्चाटन वर्षा में, और मारण कर्म शिशिर ऋतु में करे ।
शांति कर्म को शरद ऋतु में और पौष्टिक कर्म को हेमन्त ऋतु में करे। सब कर्मों का समय जानकर अपने अपने ही काल में करे ।
अथ मंडलोद्धारः
अन्योन्य वज्र विद्धं पीतं चतुर स्त्रमवनि बीजयुतं कोणेषु रातं युक्तं भूमंडल संज्ञकं ज्ञेयं
पीतवर्ण और चौकोर दो वजों से बिंधा हुवा चारों कोणों में लं बीज सहित पृथ्वी
॥ २७ ॥
नीरज भूषित वदनं कलशाकारं चतुर्वकारंयुतं श्वेतजल बीजं युतं मंडल माहुराचार्याः
मुख मूल वपोपेतं पत्राकितः सितः
पंच वर्णात्तद्दिकोण: कलशस्तोय मंडलं
1138 11 मंडल कहलाता है ।
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कमल से शोभित मुख वाला कलश के आकार वाला और चार वकार युक्त श्वेत वर्णवाला तथा मध्य में प ( जलबीज) लिये हुवे यंत्र को आचार्यों ने जल मंडल कहा है।
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मुख
की जड़ में वे और प से युक्त कमल के चिन्ह सहित पं और यं वर्णों से दिशाओं में भरा हुवा कलशा कार श्वेत यंत्र को जल मंडल कहा है।
अर्द्धनु मंडलाकारं प्राहु वरुणमंडलं केचित्त त्रापिनान्यस्य भेदो भवति लक्ष्मणाः
9595959159159597 ९७ P51969595959SPSY
॥ ३१ ॥