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________________ 252525252525 dengguna 3525252525205 स्फटिक प्रवाल मुक्ता चामीकर पुत्रजीव कृत मणिभिः अष्टोत्तर शत जाप्यं शांत्याद्यर्थं करोतु बुधः ॥ २० ॥ शांति कर्म में स्फटिक मणि से वश्य तथा आकर्षण में प्रवास (मूंगे ) से, पौष्टिक में मुक्ता से, स्तंभन से सुवर्णकी माला से माराण विद्वेषण तथा उच्चाटन कर्म में पुत्र जीव (जीया पोता) कृत मणी की माला से पंडित कौं । मोक्षाभिचार शांतिक वश्या कर्षेषु योजये क्रमशः अगुंष्टाद्यं गुलिका मणियोगुष्टेन चाल्यंते मोक्ष की इच्छा में अंगुठे, ॥ २१ ॥ मारण विद्वेषण तथा उद्घाटन में तर्जनी से, शांति तथा पौष्टिक कर्म में मध्यम, वश्य कर्म में अनामिका और आकर्षण तथा स्तंभन कर्म में कनिष्टा उंगुली से जप करे मणिया अंगुठे से ही चलाई जाती है। कुर्याद् वाम हस्तेन वश्या कर्षण मोहनं दक्षिणेनाखिलं होमं शिष्टाः सर्वे क्रिया अघि ॥ २२ ॥ बायें हाथ से वशीकरण, आकर्षण और मोहन कर्म, कर्म को करे, शेष क्रियायें और सभी होम दाहिने हाथ से ही किये जाते हैं। वाम वाची प्रवृत्ति स्याद्वश्यं शकादि साधनं, दक्षिणे कृष्टि नाशादिरुभयो मोक्षि साधनं ॥ २३ ॥ बायें स्वर के चलने पर वशीकरण और इन्द्र आदि (शत्रु आदि) का साधन करना चाहिये दाहिने स्वर के चलने पर स्तंभन और मारण आदि धर्म करने चाहिये तथा बायें और दाहिने दोनों स्वरों के चलते वक्त मोक्ष का साधन करना चाहिये । वसंतं ग्रीष्मं प्रावृट शिशिरं शरदं तथा हेमंतश्चेति विज्ञेयाऋतवोत्रदिनेदिन ॥ २४ ॥ वसंत ग्रीष्म प्रावृत (वर्षा) शिशिर शरद और हेमंत ऋतुयें प्रतिदिन आती रहती है। वसंत विद्वि पूर्वान्हं ग्रीष्मं मध्यदिनं विदुः प्रावृत अपरान्हं प्राहुः संध्यां शिशिर मादिशेत् ॥ २५ ॥ पूर्वान्ह को वसंत, मध्यान्ह को ग्रीष्म, अपरान्ह प्रावृट या वर्षा और संध्या को शिशिर कहते हैं। (वर्षाऋतु अषाढ़ शुक्ल १ से भादौ शुदि अमावस्या तक जाने) 95959595913969 ९६ P519590595195195
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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