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________________ COSISTA5IDISCI505 विद्यानुशासन A5051015015CKSON पलाश तरु बीज चूर्ण पलसंयुतां गोमयाच कुकटंव तो गृहीतम बलिहव तक्रोत्थितं त्रिसप्त दिवसानि.यस्टापट एव जीर्ण पिवन जयेत् मृति जरा रूजा अपि लेभेत मेधामति॥१७४ ॥ पलाश (छोला) वृक्ष के बीज के एक पल मात्र चूर्ण को गोमय (गोबर) के रस में अथवा गाय की तक्र में तीन दिन या सात दिन तक चाटे और दूध पीवे तो उसका शरीर जीर्ण होने पर भी यह बुढापा के रोगों को जीतकर बहुत बुद्धि को प्राप्त करता है। अधामलको उदंबर जंबु वदिशसितार्जुनः, वंशः पिप्पल मदन वर द्विज वृक्ष:प्लाक्षास्तथा मंजिष्टा ॥१७५ ॥ विल्वार्जुनटोः चैकं वकुलपि काश वंजुलाः पनसं अकं शमी कंदवस्वतो निंबो मधुकक्ष १७६॥ वृक्षानक्षत्राणम् स्वादि नामपि क्रमादुक्ता आयुद्दीयं वांछन सदा स्वतारा तकं रक्षत ||१७७॥ यस्य तारा तरो कर्म पुष्टा धुच्चाटनादिया, यथा विधि विधीयेत् स तत्फल मवाप्नुयात ॥१७८॥ अश्वी (असंगध) आमलक, (आँवला) उदंबर, (गूलर) जंबु, (जामुन) खदिर, (खेर) असित, (अगर) अर्जुन वंश, (बांस) पीपल, मदन वृक्ष, वट (वह) द्विज पलाश, प्लक्षा (पीलवानी) मंजिष्ठा (मजीष्ठा) विल्व, (बेलफल) अर्जुन में से एक बकुल (मोलश्री) कोकिलाक्ष, सर्जवृक्षा-चंजुल-पनस (कटहल) एक शमी (खजेड़ा) कदंब चूत (आम) नीम और मुधक (महवा) यह अश्वणी आदि नक्षत्रों के वृक्षों का वर्णन क्रम से किया गया है दीर्घ आयु के चाहने वाले को सदा अपने नक्षत्र के वक्ष की रक्षा करे जिसके नक्षत्र के वृक्ष की पुष्टि अथवा उच्चाटन आदि कर्म विधि पूर्वक किये जाते हैं। वह उसके फल को पाता है। पुष्टि किया विधिमिमं सकलं विजानत, मंत्रायनेन यदि वांछति पुष्टि कृत्यै, हस्तस्थ एव तिरिवलोपि समी हितार्थ: स्वात्ततस्य संशय वतोत्र कदापि माभूत यदि मंत्री पुष्टि कर्म की इच्छा करता है तो इस पुष्टि क्रिया को जानते हुए इसके हाथ में सब इछित वस्तुयें रहती हैं इसमें कुछ भी संदेह नहीं है। इति SHREST501510505051९९४ X5DISCISIOSCIRCISION
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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