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हिन्दी अनुवाद अतएव हे कुबेर, इन दोनोंके निवास भवनको स्वर्णमयो, कान्तिमान् व देवोंकी सीने विलास योग्य बना दो। इन्द्रकी आज्ञानुसार कुबेरने कुण्डपुरको ऐसा ही सुन्दर बना दिया। उसके चारों तरफ रत्नमयी प्राकार बन गया जिसके सब ओर नाना प्रकार के द्वार थे और उसके चारों ओर ऐसी परिखा थी जिससे वहाँ शत्रुओंका संचार अवरुद्ध हो जाये। नगरके चारों ओर फल-फूलोंसे सुसज्जित नन्दन वन थे, और स्थान-स्थानपर तरुणी स्त्रियों के लिए उत्तम नत्य-शालाएँ थीं। सर्वत्र धवल प्रासाद दृष्टिगोचर होते थे, जिनके शिखर आकाशकी अन्तिम सीमाको चूम रहे थे। उनके तल मागकी भूमि स्फटिक शिलाओंसे पटी हुई थी, और सभी स्थान केशरके रसके छिड़कापसे गीले हो रहे थे। सर्वत्र रखे गये फूलोंकी विचित्र शोभा थी जिनका भ्रमर रसपान कर रहे थे। समस्त स्थान दीप्तिमान स्वर्णसे पीला पड़ रहा था, और सर्वत्र मोतियोंसे रचित रंगावली दिखाई देती थी। पूरा भवन वैडूयं मणियोंसे चमक रहा था, चन्द्रकान्त मणियोंसे जल झर रहा था और सूर्यकान्त मणियोंसे ज्वाला प्रज्वलित हो रही थी। उसके ऊपर उड़ती हुई ध्वजाओंसे भवन चलायमान सा दृष्टिगोचर हो रहा था। सभी ओर नगाड़ों और मृदंगोंकी ध्वनि सुनाई पड़ रही थी, तथा सर्वत्र नृत्यशालाओं में नृत्य और नाटक हो रहे थे, कहीं नारियोंके नूपुरोंकी मधुर ध्वनि सुनाई दे रही थी। सर्वत्र शान्ति व्याप्त थो और कहीं भी द्वेष व अपराधोंका नामोनिशान नहीं था। ऐसे उस राजभवनके प्रांगण में अन्तिम तीर्थंकरको वन्दना करनेवाले उस यक्षोंके राजा कुबेरने छह मास तक रत्नोंको वृष्टि को ॥७॥
प्रियकारिणी देवौका स्वप्न एक दिन जब प्रियकारिणो देवी अपने प्रासादके सौरतल (करी मंजिल ) में स्थित शयनालयमें शयन कर रही थीं, तब उन्हें निद्रामें समस्त दुःखोंका अपहरण करनेवाली और सुखदायी स्वप्नावली दिखाई दो। उस सुरेन्द्रको अप्सराओंके समूह द्वारा सम्मानित तथा समस्त