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धीरजिणिवरित
किया गया है। इसी शब्दका आनंश रूप बिम्बिसार या बिम्बलार प्रतीत होता है, और बौद्ध परम्परामें श्रेणिकके साथ-साथ अथवा पृथक रूपसे यही नाम उल्लिन खित हुआ है। बौद्ध ग्रन्थ उदान अटुकथा १०४ के अनुसार निम्बि सुवर्णका एक नाम है, और राजाका शरीर स्वर्णके समान-वर्ण होने के कारण उसका बिम्बि. पार नाम पड़ा ! पन तिब्बतीय परम्परा ऐसी भी है कि इस राजाकी माताका नाम विम्बि था और इसी कारण उसका नाम बिम्बिसार पड़ा। किन्तु जान पड़ता है कि ये व्युत्पत्तियाँ उक्त नामपर-से कल्पित की गयी है। श्रेणिक नामकी भी अनेक प्रकारसे व्युत्पत्ति की गयी है। हेमचन्द्र कृत अभिधान-चिन्तामणि में 'श्रेणी: कारयति श्रेणिको मगधेश्वरः' इस प्रकार जो श्रेणियोंकी स्थापना कर वह श्रेणिक, यह व्युत्पत्ति बतलायी गयी है। बौद्ध परम्परा के एक विनय पिटकको प्रतिमें यह भी कहा पाया जाता है कि चूंकि बिम्बिसारको उसके पिताने अठारह श्रेणियों में अवतरित किया था, अर्थात् इनका स्वामी बनाया था, इस कारणसे उसकी श्रेणिक नामी प्रसिद्धि हुई । अर्द्धमागधी जम्बूद्वीप पण्यत्तिमें ९ नारू और ९, कारू ऐसी अठारह श्रेणियों के नाम मी गिनाये गये है। नौ नारू है-कुम्हार, पटवा, स्वर्णकार, सूतकार, गन्धर्व ( संगीतकार ), कासवग, मालाकार, कच्छकार और तम्बूलि । तथा नी कारू है--चर्मकार, यन्त्रपीड़क, गंछियां, छिम्पी, कंसार, सेवक, ग्वाल, भिल्ल और धीवर । यह भी सम्भव है कि प्राकृल ग्रन्थों में इनका नाम जो 'सेनीय' पाया जाता है उसका अभिप्राय सैनिक या सेनापतिसे रहा हो और उसका संस्कृत रूपान्तर भ्रमवश श्रेणिक हो गया हो।
प्रस्तुत ग्रन्थ के अनुसार मगध देश राजगह नगरके राजा प्रक्षेणिक या उपश्रेणिककी एक रानी चिलातदेवी ( किरातदेवी ) ले चिन्नातपुत्र या किरातपुत्र नामक कुमार उत्पन्न हुआ । उसने उज्जैनीके राजा प्रद्योतको छलसे बन्दी बनाकर अपने पिताके सम्मुख उपस्थित कर दिया। इससे पूर्व उद्योतके विरुद्ध राजाने जो
औदायनको भेजा था उसे उद्योतने परास्त कर अपना बन्दी बना लिया था । चिलातपुत्रकी सफलतासे उसके पिताको बहुत प्रसन्नता हुई और उन्होंने उसे ही अपना उत्तराधिकारी बनाकर उनका राज्याभिषेक कर दिया। किन्तु वह राज्यकार्यमें सफल नहीं हुआ और अनीतिपर चलने लगा । अतः मन्धियों और सामन्तोंने निर्वासित राजकुमार श्रेणिकको कांचीपुरसे बुलवाया । श्रेणिकने आकर किरातपत्रको पराजित कर राज्यसे निकाल दिया । चिलातपुत्र बनमें चला गया और अहाँ ठगों और लुटेरोंका नायक बन गया। तब पुनः एक बार धेणिकने उसे
१. मुनि नगराज : मागम और त्रिपिटक, पृष्ट ३२४ ।