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बोरजिणिवपरित जहाँ भगवान् महावीरका जन्म हुआ था और जहाँसे वे अपने ३० वर्षके कुमारकालको पूरा कर प्रवजित हुए थे 1 शिलालेख में यह मो उल्लेख है कि भगवान के जन्मसे २५५५ वर्ष व्यतीत होनेपर विक्रम संवत् २०१२ वर्षमें भारत के राष्ट्रपति श्री राजेन्द्रप्रसादने वहाँ आकर उस स्मारकका उद्घाटन किया।
महावीर स्मारकके समीप ही तथा पूर्वोक्त प्राचीन क्षत्रिय कुण्डकी तटवर्ती भूमिपर साहू शान्तिप्रसादके दानसे एक भव्य भवनका निर्माण भी करा दिया गया है और वहाँ बिहार राज्य शासन द्वारा प्राकृत जैन शोध संस्थान भी चलाया जा रहा है। यह संस्थान सन् १९५६ में मेरे ( डा. हीरालाल जैन ) निर्देशकत्वमें मुजफ्फरपुरमें प्रारम्भ किया गया था। उन्हीं के द्वारा बंशाली में महावीर स्मारक स्थापित कराया गया तथा शोध-संस्थानके भवनका निर्माण कार्य प्रारम्भ कराया गया ।
वैशालीको स्थितिका यह जो निर्णय किया गया उसमें एक शंका रह जाती है। कुछ धर्म-अन्धुओंको यह बात खटकती है कि कहीं-कहीं शालीकी स्थिति विदेहमें नहीं, किन्तु सिन्धु देशमें कही गयी है। प्रस्तुत ग्रन्थ ( ५,५) में भी कहा पाया जाता है कि सिधुनिसइ वइसालीपुरवरि' तथा संस्कृत उत्तर पुराण (७५,३ ) में भी कहा गया है :
सिन्ध्वास्यविषये भूभवशालीनगरेऽभवत् ।
चेटकाख्योऽतिविख्यातो बिनीतः परमाहवः ॥ इन दोनों स्थानोंपर सिन्धु विषय व सिन्ध्वाख्यविषयेका तात्पर्य सिन्ध देशसे लगाया जाना स्वाभाविक ही है। किन्तु साथ ही यह भी स्पष्ट है कि वर्तमान सिन्धदेशमें न तो किसी वैशाली नामक नगरीका कहीं कोई उल्लेख पाया गया
और न उसको पूर्वोक्न समस्त ऐतिहासिक उल्लेखों और घटनाओंसे सुसंगति बैठ सकती है। वैशालीकी स्थितिमें अब कहीं किसी विधानको संशय नहीं रहा है। इस विषयपर मैंने जो विचार किया है उससे मैं इस निर्णयपर पहुंचा है कि उत्तर पुराणमें जो 'सिम्स्यास्यविषये पाठ है वह किसी लिपिकार के प्रमावका परिणाम है। यथार्थतः वह पाठ होना चाहिये 'सिन्ध्याय-विषये' जिसका अर्थ होगा वह प्रदेश जहाँ नदियोंका बाहुल्य है। तिरहुत प्रदेशका यह विशेषण पूर्णतः मार्थक है। इस प्रदेशका उल्लेख शंकरदिग्विजय नामक ग्रन्धर्म भी आया है, और वहाँ उसे उदकदेश कहा गया है। तीरभुक्ति नामकी भी यही सार्थकता है कि समस्त प्रवेश प्रायः नदियों और उसके तटवर्ती क्षेत्रोंमें बटा हुआ है। ऊपर जो तीरभुक्ति सम्बन्धी एक उल्लेख उद्धृत किया गया है उसमें इस प्रवेशको 'नदी-पञ्चदशान्तरे' कहा गया है, अर्थात् पन्द्रह नदियों में बटा हुआ प्रदेश । बहाँ नदियोंकी बहुलता