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प्रस्तावना
रूप तिरहुत अब भी प्रचलित है। पुराणों में इसकी सीमाएं इस प्रकार निर्दिष्ट की गयी है :
गङ्गा-हिमवतोमध्ये नदीपञ्चदशान्तरे । तीरभुक्तिरिति ख्यातो देशः परम-पावनः ॥ कौशिकी तु समारभ्य गण्डकीमधिगम्य । योजनानि चतुविशद् ध्यायामः परिकीर्तितः।। गङ्गा-प्रवाहमारम्य यावद् हमवर्त घरम् ।
विस्तार गोयनोको स्म 'तुलादा। इस प्रकार विदेह अर्थात् तोरभुक्ति ( तिरहुत ) प्रदेश की सीमाएँ सुनिश्चित है। उत्तरमें हिमालय पर्वत और दक्षिण में गंगा नदी, पूर्वमें कौशिकी और पश्चिममें गण्डको नामक नदियाँ । किन्तु विदेहकी ये सीमाएं भी एक विशाल क्षेत्रको सूचित करती है और अब हमारे लिए यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि इस प्रदेशामें कुण्डपुरको कहाँ रखा जाये। इसके निर्णयके लिए हमारा ध्यान महावीरके ज्ञातकुलोलन, ज्ञातपुत्र आदि विशेषणों की ओर आकृष्ट होता है । ये ज्ञात क्षत्रियवंशी कहाँ रहते थे इसका संकेत हमें बौद्ध साहित्य के एक अतिप्राचीन ग्रन्थ महावस्तुमें प्राप्त होता है। वहाँ प्रसंग यह है कि बुद्ध भगवान् गंगाको पार कर वैशालीको
ओर जा रहे हैं और उनके स्वागत के लिए वैशाली संघके लिच्छवी आदि अनेक श्वत्रियगण शोभायात्रा बनाकर उनके स्वागतार्थ आते हैं। इसका वर्णन करते हुए कहा गया है कि:
स्फीतानि राज्यानि प्रशास्यमाना । सम्पग् राज्यानि करोन्ति ज्ञातयः ।। तथा इमे लेच्छवि-मध्ये सन्तो।
देवेहि शास्ता उपमामकासि ।। अर्थात् ये जो क्षत्रियगण भगवान्के स्वागतफे लिए आ रहे हैं उनमें जो ज्ञात नामक क्षत्रिगण है ये अपने विशाल राज्यका शासन भले प्रकारसे करते है और में लिच्छवि गणके क्षत्रियों के बीच ऐसे प्रतिष्ठित और शोभायमान दिखाई देते हैं कि स्वयं शास्ता अर्थात् स्त्रयं भगवान् बुद्धने उनको उपमा देयोंसे की है । इस उल्लेखसे एक तो यह बात सिद्ध हो जाती है कि ज्ञातृकुलके क्षत्रियोंका निवासस्थान बैशाली हो था, और दूसरे के लिच्छविगण में विशेष सम्मानका स्थान रखते थे। इसका कारण भी स्पष्ट है। ज्ञातुकोंके कुलकी प्रतिष्ठा इस कारण और भी बढ़ गयी प्रतीत होती है क्योंकि उनके गणनायक सिद्धार्थ वैशाली गणके नायक राजा चेटकके जामाता ये 1 चेटकको कन्या ( भगिनी ) प्रियकारिणी त्रिशलाका