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प्रस्तावना
परास्त किया। अन्ततः बिलासपुत्रने विरक्त होफर मुनि-दीक्षा धारण कर ली। इसी अवस्था में बह एक शृगालोका भक्ष्य बनकर स्वर्गवासी हुआ।
श्रेणिकका जन्म उपश्रेणिककी दूसरी पत्नी सुप्रभादेवीसे हुआ था । वह बहुत विलक्षण-बुद्धि था। पिता द्वारा जो राज्यको योग्यता जानने हेतु राजकुमारोंकी परीक्षा की गयी उसमें थेणिक ही सफल हुआ। तथापि राजकुमारोंमें वर उत्पन्न होनेके भयसे उसने श्रमिकको राज्यसे निर्वासित कर दिया। पहले तो अंणिक भम्वग्राममें पहुँचा, और फिर वहाँसे भी परिभ्रमण करता हुआ तथा अपनी बुद्धि
और साहसका चमत्कार दिखाता हुआ कांचीपुरमें पहुंच गया। मगधर्मे राजा चिलातपुत्रके अन्यायसे त्रस्त होकर मन्त्रियोंने श्रेणिकको आमन्त्रित किया और उसे मगधका राजा बनाया।
एक दिन राजा अपनी राजधानीके निकट वनम आखेट के लिए गया। वहाँ उसने एक मुनिको ध्यानारून देखकर उसे एक अपशकुन समझा और क्रुद्ध होकर उनपर अपने शिकारी कुत्तोंको छोड़ दिया। किन्तु वे कुत्ते भी मुनिके प्रभावचे शान्त हो गये और राजाके बाण भी उन्हें पुष्पके समान कोमल होकर लगे। तय राजाने अपना क्रोष निकाल लिए एक भूत रुप नुनके गले में साल दिया। इस घोर पापसे चणिकको सप्लम नरकका भायु-बन्ध हो गया। किन्तु जब उन्होंने देखा कि उनके द्वारा इतने उपसर्ग किये जानेपर भी उन मुनिराजो लेशामात्र भी रागद्वेष सत्पन्न नहीं हुआ, तब उनके मनोगत भावों में परिवर्तन हो गया । जब मुनिने देखा कि राजाका मन शान्त हो गया है, तब उन्होंने अपनी मधुर वाणीसे उन्हें आशीर्वाद दिया और धर्मोपदेश भी प्रदान किया। बस, यहीं राजा श्रेणिकका मिथ्यात्व भाव दूर हो गया और उन्हें क्षायिक सम्बत्वकी प्रासि हो गयी। वह मुनिराजके चरणों में नमस्कार कर प्रसन्नलामे घर लौटे।
एक दिन राजा श्रेणिकको समाचार मिला कि विपुलाचल पर्वतपर भगवान् महावीरका आगमन हुआ है । इसपर राजा भक्तिपूर्वक वहाँ गया और उसने भगवान्की वन्दना-स्तुति की। इस धर्म भावनाके प्रभावसे उनके सम्यक्त्वकी परिपुष्टि होकर सप्तम नरककी आयु घटकर प्रथम मरककी शेष रही, और उसे तीर्थकर नामकर्मका बम्ध भी हो गया। इस अवसरपर राजा श्रेणिकने गौतम गणवरसे पूछा कि हे भगवन्, यद्यपि मेरे मन में जैन मतके प्रति इतनी महान श्रद्धा हो गयी है, तथापि व्रत-ग्रहण करनेकी मेरी प्रवृत्ति क्यों नहीं होती? इसका गणधरने उत्तर दिया कि पहले तुम्हारी भोंगोंम अत्यन्त आसक्ति रही है व गाड़ मिथ्यात्वका उदय रहा है । तुमने दुरुचरित्र भी किया है और महान आरम्भ भी । इससे जो तीन पाप उत्पन्न हुआ उससे तुम्हारी नरककी आयु बंध चुकी है ।