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१२. ९.२० ]
हिन्दी अनुवाद
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उन्हें जलसे धोनेकी आवश्यकता होती । वे नींद नहीं लेते। नेत्र न होते हुए भी वे सब कुछ देखते हैं। उनके मन नहीं होता तो भी वे निरन्तर सचराचर जगत्को जानते हैं। सिद्धों का जो सुख है, उसे यह चर्मचक्षु, कोई मानव, सुरदेव, या विद्याधर कैसे वर्णन कर सकता है ? पंचेन्द्रियोंसे मुक्त जो सुख शुद्ध परमात्म पदको प्राप्त सिद्धोंके होता है, वह इस भुवनतलपर किसी अन्य जीवको नहीं मिलता ॥८
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अजीव तत्त्वोंका स्वरूप
इस प्रकार संसारी और सिद्ध इन दोनों प्रकारके जीवोंका व्याख्यान किया गया। अब मैं उस अजीव तत्त्वके विषयमें जो कुछ जाना गया है, उसका वर्णन करूँगा । धर्म और अधर्म ये दोनों तत्त्व तथा आकाश और काल, इस प्रकार ये चारों अती तत्त्व रूपरहित अर्थात् कि जाने गये हैं । इनका स्वरूप विशेष ज्ञानियों और विद्वानोंने इस प्रकार जाना है | धर्मद्रव्यका स्वभाव अन्य जीवादि द्रव्योंके गमन कार्यमें सहायक होता है, और अधर्म द्रव्यका स्वभाव है गमन करते हुए द्रव्योंको ठहरने में सहायक होना । आकाशका कार्यं शेष सभी द्रव्योंको अवकाश प्रदान करता है, और कालका लक्षण वर्तना अर्थात् भूत, भविष्यत् व वर्तमान समयका विभाजन करना है। इस प्रकार काल अनादि और अनन्त समय रूप है । उसका जो युग, वर्ष, मास आदि रूप व्यावहारिक स्वरूप है, उसका प्रचलन नरलोक मात्र में है, जबकि धर्म और अधर्म की व्याप्ति समस्त त्रिलोक मात्रमें है । आकाश अनन्त है और शब्द-गुणात्मक है। उसका दो भागों में विभाजन पाया जाता है- एक लोकाकाश, दूसरा अलोकाकाश | लोकाकाशमें सभी द्रव्योंका वास तथा गमनागमन है, जो सभी अनुभव में आता है। किन्तु उसके परे जो अन्य द्रव्योंसे रहित अलोकाकाश है, उसका वर्णन केवल योगियों द्वारा किया गया है ।
पुद्गल द्रव्य पांच गुणोंसे युक्त है - शब्द, गन्ध, रूप, स्पर्श और रस । रूपकी अपेक्षा पुद्गल द्रव्य कृष्णादि नाना वर्णोंसे युक्त है । प्रमाणकी अपेक्षा वह स्कन्ध, देश, प्रदेश, अर्धप्रदेश, अर्धि प्रदेश आदि रूपसे विभाज्य होता हुआ परमाणु तक पहुँचता है, जहां उसका पुनः विभाजन नहीं हो सकता। इस प्रकार यह पुद्गल सूक्ष्म भी है, स्थूल भी, स्थूलसूक्ष्म भी, व स्थूल स्थूल । इस प्रकार पुद्गल द्रव्य चतुर्भेदरूप जाना जाता है ||९||
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