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वीरजिणिवचरिउ [१२. १. २५-- एईडिपसु चत्नारि होति। विलिंदिपसु पंच जि कहति ।। ता जाम असण्णिाद पंच-करगु । सण्णिउ पजत्ती-छक-धरणु ॥ प्रयहि जे पचप्पंति णेय । ते जति अपज्जत्ता अणेय !! पजपतहु लगइ खणालु |
जगि सबह भिषणमुहुत्तु कालु ॥ घत्ता-ओरालिउ तिरियहुँ माणबहुँ
सुर-णारयहुँ विउविय। हार गंतु का वि गुगि
कम्मु तेउ सयलहँ वि थिउ ॥१॥
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तिरिय हवंनि दुविद्य तस थावर
थावर पंच-भेयया । पुहवी आउ तेड वाऊ वि य
___ बहु-विह हरिय-कायया ॥ कसिणारुण हरिय सु-पीयालय
पंडुर अवर वि धूसरिय | पही महि-कायहुँ मउय महि
पंच-वण्ण मई बजरिय ॥