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११. ३. १०)
हिन्दी अनुवाद
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गजकुमारकी वीक्षा, वन्तीपुरकी यात्रा तथा
वहाँ पर्वतपर आतापन योग एक दिन वहां वीर जिनेन्द्रका आगमन हुआ। उनको नमन करनेके लिए राजा श्रेणिक उनके पास गये, उस अवसरपर विस्तारपूर्वक धर्मोपदेशका श्रवण करके गजकुमारने वहीं दीक्षा ले ली। वे फिर तीर्थंकरको आज्ञानुसार विचरण करते हुए कलिंग देशके दन्तीपुर नामक नगरमें पहुँचे। नगरकी पश्चिम दिशामें पर्वतके शिखरपर वे श्रेष्ठ और पूज्य दिगम्बर मुनि गजकुमार योग-निरोध करके आतापन योगमें स्थित हो गये । भव्यजनोंने जाकर उन्हें प्रणाम किया। उस नगरके राजा नरसिंह, जो अपने बैरीरूपी दानवोंके लिए नरसिंह थे, ने गजकुमार मुनिको तीन आताप सहते हुए देखा और अपने मन्त्री बुद्धदाससे पूछा कि इस मुनिसंघमें यह एक मुनि इस प्रकार क्यों आताप सह रहा है ? इसपर उस दुष्ट मन्त्रीने उत्तर दिया-यह बेचारा अनाथ वातरोगसे अत्यन्त पीड़ित हो गया है और इसलिए वह इस तीव्र सूर्यकी गर्मी में स्थित है ॥२॥
शिला-सापनसे उपसर्ग, गजकुमारका मोक्ष और
राजा तथा मन्त्रीका जैनधर्म-ग्रहण मन्त्रीकी यह बात सुनकर राजाने उससे पूछा कि मुनिके शरीरका यह वातरोग किस प्रकार मिटाया जा सकता है ? अमात्यने कहामहाराज, ऐसा करना चाहिए कि इनके बैठनेकी शिलाको तप्तायमान कर दिया जाये । तब इसपर राजाने मन्त्रीसे कहा कि तुरन्त मुनिके रोगका यह प्रतिकार करा दो। मन्त्रीने भी राजाका आदेश पाकर उस शिलाको खूब अग्नि द्वारा तापित कराके छोड़ दिया। इधर जब गजकूमार मुनि नगरमें आहारनिमित्त चर्या करके लौटे तब वे शुद्ध चारित्रवान् उसी तपी