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प्रस्तावमा नयी थी। बौद्ध सन्थोंमें उल्लेख है ( दीघनिकाय-महापरिणिवाण सुत्त ) कि मजा मन्त्री वर्षकार बुद्ध पूल था या वं वैशालीयो लिच्छवि संवपर विजय प्राप्त कर सकते है ? इसके उत्तरमें बुद्धने उन्हें यह मूचित किया था कि जबतक लिच्छवि गण के लोग आनी गणतन्त्रीय व्यवस्थाको सुसंगठित हो एफमतसे समर्थन दे रहे है, न्यायनीतिका पालन करते है और सदाचारके नियमों का उल्लंघन नहीं करते, तबतक उन्हें कोई पर।जित नहीं कर सकता। यह बात जानकर बर्षकार मन्त्रीने कुटनीतिसे लिच्छवियोंके बीच फट डाली और उन्हें ग्यायनीतिसे भ्रष्ट क्रिया । इसका जो परिणाम हुआ उसका विशद वर्णन अर्द्धमागधी आगमके भगवती सूत्र, सप्तम शतक में पाया जाता है। इसके अनुसार अजातशत्रुकी सेनाने वैशालीपर आक्रमण किया। युद्ध में महाशिलकंटक और रथमुसल नामक युद्ध-यन्त्रों का उपयोग किया गया । अन्ततः वैशाली के प्राकारका भंग होकर अजातशत्रुकी विजय हो गयो । तात्पर्य यह है कि महावीरके कालमें वैशालीकी' बड़ी प्रतिष्ठा थी और उस नगरीका नागरिक होना एक गौरयकी बात मानी जाती थी । इसीलिए महावीरको वैशालीय कहकर भी सम्बोधित किया गया है । अनेक प्राचीन नगरोंके साथ इस वैशालीयका भी दीर्घकाल तक इतिहासज्ञोंको अता-पता नहीं था। किन्तु विगत एक शताब्दी में जो पुरातत्त्व सम्बन्धी खोज-शोत्र हुई है उसमें प्राचीन भग्नावशेषों, मद्राओं व शिलालेखों मादिके आधारसे प्राचीन वैशालीकी ठोक स्थिति अवगत हो गयी है और निस्सन्देह रूपये प्रमाणित हो गया है कि बिहार राज्यसे गंगा के उत्तरमें मुजफ्फरपुर जिलेके अन्तर्गत बसाई नामक ग्राम ही प्राचीन वैशाली है । स्थानीय खोज-शोषसे यह भी माना गया है कि वर्तमान बसाढ़के समीप ही जो बासुकुण्ड नामक ग्राम है वही प्राचीन कुण्डपुर होना चाहिए । वहां एक प्राचीन कुण्डके भी चिह्न पाये जाते हैं जो क्षत्रियकुण्ड कहलाता रहा होगा । उसोके समीप एक ऐसा भी भूमिखण्ड पाया गया जो 'अहल्य' माना आता रहा है। उसपर कभी हल नहीं पलाया गया, तथा स्थानीय जनताकी धारणा रही है कि वह एक अतिप्राचीन महापुरुषका जन्मस्थान था । इसलिए उसे पवित्र मानकर लोग वहां दीपावली को अर्थात महावीरके निर्वाणके दिन दीपक जलाया करते हैं । इन सब बातोंपर समुचित विचार करके विद्वानोंने उसी स्पलको महावीरको जन्मभूमि स्वीकार किया और बिहार सरकारने भो इसी आधारपर उस स्थलको अपने अधिकारमें लेकर उसका घेरा बना दिया है और वहाँ एक कमलाकार खेदिका बनाकर वहाँ एक संगमरमरका शिलापट्ट स्थापित कर दिया है। उसपर अर्धमागधी भाषामें आ3 गाथाओंका लेख हिन्दी अनुवाद सहित भी अंकित कर दिया गया है जिसमें वर्णन है कि यह बह स्थल है