________________
१०
ܐ
१५
२०
769
वीरजिविचरिज
मिलिड परिग्गहु सलु वि एविणु । नसारि वाइड चप्पेविणु ॥ मायामहो पास जाएविणु । काणणे विस को विराएत्रिषु || रज्ज-भद्र हो ।
♡
थिं जीवइ मावश्यहो वित्तिन ॥ भद्दमित्त तो मित पियार । नं रामो लक्खणु दिहि-गारउ || रुद्दमित्त-माउलो केरी। धी सुहद सुहाइँ जणेरी ॥ सो परिणण न पाइ अवरहो । दिज्ज लग्गी साबिय पवरहो ॥
धत्ता - इय वत्त सुपिणु तत्थावेष्पिणु मेलावेपि सुडस | ते मड्डे हरेष्पिणु कन्न एपि जगह नियंतो वे यि ॥३॥
४
वक्त गुणेपि सेणिय-राणउ | अलग्ग सेणा सागर ॥ राउतहिं जान
चाहिय ।
पिगु ण-पवेसि पडिगाहिय ।। बिं
सुह
सूरा पजर भयंकर । रायह कि करंति किर तक्कर ॥ ता के विरुद्ध वृद्धा । के विकतो पणे छुद्धा ॥ पनि नियवि निरारिउ सेन्नहो । जिह अम्म हि होइ न अन्नहो । एम भणेवि कुमारि वियारिय । सा चिलायपुत्तं संघारिय ||
[ ६.३.७