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वास्तु चिन्तामणि
वास्तु निर्माण का आकार
Shape of Vastu Construction भूमि के आकार की ही भाति वास्तु या घर के आकार का महत्त्व है। वास्तु का आकार यथासंभव चतुष्कोण अर्थात् वर्गाकार या आयताकार ही रहना चाहिए। यह निवासियों के लिए सुख शांति देता है। यदि वास्तु या मकान का कोई भी कोना बढ़ा या कटा हुआ होगा तो उसका प्रभाव वास्तु पर पड़े बिना नहीं रहता। इसका संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है1. ईशान दिशा के कोने का कटा रहना (या अभाव होना) या अन्दर धंसा
रहना सुख-समृद्धि एवं वंशनाश का हेतु बनता है। 2. पूर्व दिशा का कोना नहीं रहने से परिवार में शांति का अभाव होकर रोज
कलह होने लगती है। आग्नेय दिशा में कोना न होने या धंसा रहने से कुछ न कुछ शुभ फल होगा। वायव्य दिशा में कोना न होने या धंसा रहने से आर्थिक संकट आते हैं। नैऋत्य दिशा में कोना न होने या धंसा रहने से हानि नहीं होती। व्यापार ठीक रहता है तथा शुभ फल मिलता है। वास्तु की कोई भी दिशा या विदिशा का अन्दर की ओर धंसा रहने से
अनेकों लाभ रुक जाते हैं। 7. पदि जमीन और परकोटा समानान्तर है किन्तु मुख्य वास्तु दिशाओं के
समानान्तर नहीं होगी या वास्तु के कोने विदिशाओं की ओर मुख करके बने होंगे तो वह वास्तु अयोग्य होती है तथा निरन्तर उपद्व होते रहते
जमीन और परकोटा समानान्तर न रहने पर यदि मात्र वास्तु समानान्तर हो तो उसे भी अयोग्य समझा जाता है। ऐसी वास्तु निर्माण करने वालों को स्थिरता नहीं रहती।