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वास्तु चिन्तामणि
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वास्तु की छठवीं आयोजना
SIXTH PLAN
धान्यं स्त्रीभोग वित्तं च श्रृंगाराय तनानिच। ईशान्यादि क्रमस्तेषां गृहनिर्माणकं शुभम्।। एके स्वस्थानशस्तानि स्वस्वायस्व दिशाष्वपि।।
- वाराहाचार्य कृत वृहत्संहिता
वायव्य
उत्तर
ईशान
धन धान्य
देव स्थान
पश्चिम
सामान गृह
।
रसोई
शयनगृह
नैऋत्य
दक्षिण
आग्नेय
नोट :- इसमें दिए गए श्लोक की एक पंक्ति अप्राप्त है। इस कारण श्लोकार्थ
की चित्र से संगति नहीं हो पा रही है। पाठक कृपया इसे ध्यान में रखें।