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वास्तु चिन्तामणि
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द्वितीय वास्तु निर्माण आयोजना
SECOND PLAN पुग्वे सीहदुवार अग्गीइ रसोई दाहिणे सयणं। नेरइ नीहारठिई भोयणठिइ पच्छिमे भणियं। 1107।। वायव्वे सन्याउह कोसुत्तर धम्मठाणु ईसाणे। पुवाइ विणिद्देसो मूलग्गिहदार विक्रवाए। 1108 ||
वास्तुसार प्र..
वायव्य
उत्तर
ईशान
आयुधकक्ष
धनसंग्रह
धर्मस्थान
पश्चिम
सिंह द्वार
पूर्व
भोजनगृह नीहारगृह (शौचालय)
शयनकक्ष
रसोई
नैऋत्य
दक्षिण
आग्नेय
इन सबका घर के मूल द्वार की अपेक्षा से पूर्वादिक दिशा का विभाग करना चाहिए अर्थात् जिस दिशा में घर का मुख्य द्वार हो उसे पूर्व मानकर उपरोक्त प्रकार से विभाग करना चाहिए।