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वास्तु चिन्तामणि
वृत्ताकार डायल पर स्वतंत्रता पूर्वक घूमती है। यह सुई सदैव उत्तर दिशा की
ओर संकेत करती है। यह डायल सीधे ही या पारे पर लगाया जाता है। उत्तर दिशा की ओर संकेत करने से वहां पर बने डायल में 360 डिग्री के चिन्हों द्वारा सभी दिशाओं का निर्धारण कर लिया जाता है। चुम्बकीय सुई पृथ्वी की चुम्बकीय धारा के अनुरूप उसके समानांतर हो जाती है अत्त: सदैव वह उत्तर-दक्षिण दिशा में ही स्थिर होती है तथा चिन्ह के द्वारा उत्तर दिशा को सदैव दर्शाती रहती है। दिशा निर्धारण की यह विधि सरल तथा व्यवहारिक है।
दिशा निर्धारण की प्राचीन विधि Old Method of Determination of Directions
रात्रौ दिक्साधनं कुर्याद् दीप सूत्र धुवैक्यतः। समे भूमि प्रदेशे तु, शंकुना दिवसेऽथवा।।221।
- प्रासाद मंडन मकान और मंदिर को सही दिशा में निर्माण करने के लिए रात्रि में दिशा साधन दीपक, सूत एवं ध्रुव से किया जाता है। दिवस में दिशा साधन समतल भूमि पर शंकु रखकर किया जाता है।
समभूमि दुकरवित्थरि दुरेह चक्करस मज्झि रविसंक। पढ़मंतछायागब्भे जमुत्रा अद्धि उदयत्।।
- वास्तुसार प्र. । गा. 6 समतल भूमि पर दो हाथ के विस्तार वाला एक गोल चक्र बनाएं। इसके केन्द्र बिन्दु में बारह अंगुल का एक शंकु स्थापित करें। पुन: सूर्य के उदयार्द्ध के समय शंकु की छाया का अतिम भाग गोलाकृति की परिधि में जहां पर लगे, उसे चिन्हित कर दें तथा इसे पश्चिम दिशा समझें। इसी तरह सूर्य के अस्त समय में करें तथा दूसरा चिन्ह करें। यह पूर्व दिशा है इन दोनों बिन्दुओं को मिलाकर एक सीधी रेखा खीचें। अब इस रेखा के तुल्य त्रिज्या (अर्धव्यास) मानकर पूर्व बिन्दु तथा पश्चिम बिंदु से दो वृत्त खींचे। इससे दोनों वृत्तों को काटने से मत्स्याकृति बनेगी। दोनों काटे गये बिंदुओं को जोड़ दें। ऊपर की ओर उत्तर तथा नीचे की ओर दक्षिण दिशा होगी।
उदाहरणार्थ 'अ' केन्द्र बिन्दु पर बारह अंगल का शंक स्थापन करें तथा इसी बिंदु से दो हाथ त्रिज्या का एक वृत्त खींचें। सूर्योदय के समय शंकु की छाया वृत्त में क बिन्दु पर स्पर्श करती है। तथा मध्यान्ह के समय च बिन्दु से निकलती है संध्या समय सूर्यास्त पर च बिन्दु से होकर रेखा खींचने पर