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वास्तु चिन्तामणि
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प्रतिष्ठासार ग्रंथ में कथन है कि गृह निर्माण की भूमि में यदि एक पुरुष प्रमाण नीचे कोई शल्य हो तो कोई दोष नहीं है किंतु देवमंदिर की निर्माण भूमि को जहां तक जल आवे वहां तक खोदकर शल्य का शोधन करना उपयुक्त है।
विश्वकर्माप्रकाश के पृष्ठ 192 में उल्लेख है कि जलान्तं प्रस्तरान्तं व पुरुषान्तमथामि वा।
क्षेत्रं संशोध्यचोद्धृत्य सदनमारभेत्।। जमीन की शल्य का निराकरण करने हेतु जमीन को जल आने तक या पत्थर की चट्रान लगने तक अथवा एक पुरुष प्रमाण तक खोदकर शुद्ध कर लेना चाहिए। पश्चात उस जमीन पर देवालय, 'प्रवन ना दुकान, स्वान आदि निर्मित करना चाहिए।
विशेषत: देवालय की भूमि में वेदी के नीचे, गृह भूमि में, आंगन में, देहरी और दरवाजे के नीचे अथवा समीप में कोई शल्य या अपवित्र पदार्थ हों तो उन्हें शीघ्र ही दूर कर लेना चाहिए।
देवालय या गृह भूमि में शल्य होने से ग्राम उजड़ना, समाज में कलह, धर्मभावना हीन होना, रोगोत्पत्ति होना, अग्नि भय, मित्र नाश, परदेश गमन, संतान हानि, क्लेश, पशु एवं धन हानि अकालमरण, बुरे स्वप्न, पागलपन आदि संकटों का बार-बार आगमन होता है।
__ अतएव हितेच्छुक को सर्वप्रथम शुभदिवस नक्षत्र, जिस दिन चन्द्र एवं तारा स्वानुकूल हो उस दिन शुभ लग्न, शुभ समय में भूमि खोदकर शल्य निवारण कर लेना चाहिए। शल्य निवारण के पूर्व एक दिवस विधिवत् भूमि पूजन अवश्य करें।