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वास्तु चिन्तामणि
भूमि का वर्ण
Colour of Land वास्तु निर्माण में भूमि की सर्वोपति भूमिका होती है। कहा गया है -
'बहुरत्ना हि वसन्धरा' पृथ्वी अनेकों रत्नों को धारण करने से बहूमूल्यवान है।
मनसश्चक्षुषोर्यत्र सन्तोषो जायते भुवि। तस्यां कार्य गृहं सर्वैरिति गर्गादि सम्मतम्।।
- गर्ग ऋषि जिस भूमि को देखने मात्र से मन, नेत्र को संतोष होता है उस भूमि पर गृह बनाने से गृहस्थ का जीवन सुसंस्कारित एवं सुखमय बीतता है।
वास्तु शास्त्र में जमीन का और घर के अंदर बाहर रंग का महत्त्व है। पृथक-पृथक रंगों की भूमि वर्णानुसार मनुष्यों के लिए उपयोगी है। भारतीय संस्कृति में वर्ण व्यवस्था के अंतर्गत चार वर्ण हैं - 1. ब्राह्मण 2. क्षत्रिय 3. वैश्य 4. शूद्र
चतुर्थ काल के प्रारंभ में तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव तथा उनके पुत्र भरत चक्रवर्ती ने यह व्यवस्था आरम्भ की थी।
सियविप्पि अरूणखत्तिणि पीयवइसी अ कसिणसुद्दी । महियवण्णपमाणा भूमि णिय णिय वण्णसुक्खयरी।।
- वास्तु प्र. 7 गाथ 5 सफेद रंग की भूमि ब्राह्मणों के लिए लाभदायक है। लाल रंग की भूमि क्षत्रियों को उत्तम फल प्रदान करती है। पीले रंग की भूमि वैश्य (वणिक्) जनों के लिए फलदायी है तथा काले रंग की भूमि शूद्रो के लिए फलदायी होती है। अतएव चारों वर्गों के लोगों को अपने अनुकूल जमीन ही कय करना उचित है।
सफेद वर्ण की भूमि पर वास्तु निर्माण करने से परिवार को ज्ञान, विवेक, बुद्धि की प्राप्ति होती है। तत्वज्ञान, आध्यात्मिक शांति तथा ध्यान साधना के लिए यह उपयुक्त भूमि है।