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________________ वास्तु चिन्तामणि 13 आवश्यकता नहीं होती तथा उत्कृष्ट जाति के भवनादि मनुष्यों को सहज ही उपलब्ध हो जाते हैं। तृतीय काल के अन्तिम चरण में कल्पवृक्षों की शक्ति में हास प्रारम्भ हुआ । शनैः शनैः वे कल्पवृक्ष लुप्त होने लगे। अतएव मनुष्यों को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए श्रम एवं कर्म करना प्रारम्भ करना पड़ा। वे पुरुष अनभिज्ञ थे क्योंकि उन्होंने पूर्व में पुरुषार्थ किया ही नहीं था । ऐसे समय एक के बाद एक चौदह कुलकर हुए जिन्होंने समयानुसार निर्देशन करके मनुष्यों को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करना सिखाया। इन कुलकरों के नाम अग्रलिखित हैं 7. प्रतिश्रुति 2. सन्मति 5. सेमंकर 5. सीमंकर 9. यशस्वी 13. प्रसेनजित 6. सीमंधर 7. विमलवाहन 10. अभिचन्द्र 11. चन्द्राभ 14. नाभिराय नाभिराय अन्तिम कुलकर थे जिनके पुत्र इस युग के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव हुए। नाभिराय अयोध्या के नरेश थे। ऋषभदेव ने सभी नागरिकों को सभ्यता के आरम्भिक पाठ पढ़ाए। आजीविका की समस्या आने पर उन्होंने निम्न लिखित षट्कर्मों को अपना कर अपनी आजीविका अर्जन करने की शिक्षा दी। + 1. 2. 3. 4. 5. 6. कृषि असि मसि विद्या शिल्प - - - - षट्कर्मों के नाम खेती कार्य अस्त्र शस्त्र संचालन का कार्य लेखन कार्य 4. क्षे 8. चक्षुष्मान् 12. मरुदेव ज्ञानार्जन तथा पाठन अध्यापन का कार्य धोबी, नाई, लुहार, भवननिर्माता, मिस्त्री आदि का कार्य वाणिज्य व्यापार, क्रय-विक्रय कार्य शिल्प कर्म में ऐसी विद्याओं एवं कर्मों का समावेश था जिनका उद्देश्य चैत्य, मन्दिर, भवन, महल, प्रासाद, मकान, उद्योग आदि संरचनाओं का विधि वत् निर्माण करना था। इनमें कला तथा विज्ञान दोनों पक्षों का ध्यान रखा गया। संरचना न केवल सुन्दर, कलापूर्ण, आकर्षक एवं मनोहारी हो वरन् उपयोगी तथा उपयोगकर्ता के लिए अनुकूल, शुभफल प्रदाता भी हो। बस यही वह बिन्दु है जहां से आधुनिक वास्तु विज्ञान का प्रारम्भ हुआ। समयानुसार वास्तु शास्त्र के कला एवं विज्ञान दोनों पक्षों में विशेष प्रगति होती गई। सामान्य नागरिकों तथा राज परिवारों के लिए अनुकूल
SR No.090532
Book TitleVastu Chintamani
Original Sutra AuthorDevnandi Maharaj
AuthorNarendrakumar Badjatya
PublisherPragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
Publication Year
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Art
File Size5 MB
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