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वास्तु देव पूजा
प्रथम कोष्ठ का अर्घ्य समस्त वास्तु कुमार को पूजूँ मन हर्षाय । पुष्पांजलि क्षेपण करूँ, विघ्न शांत हो जाय ।।
ॐ हीं श्री भूः स्वाहा । पुष्पांजलि क्षिपेत् । (1) ब्रह्म देव पूजा
जय ब्रह्म वास्तु तुम हो महान, इस यज्ञ भूमि में तिष्ठो आय | वसुद्रव्य भक्ष्य में लाया आज, अपूँ मैं तुमको यज्ञ माय | | | | ॐ आं क्रौं ह्रीं रक्तवर्णे सम्पूर्ण लक्षण स्वायुध वाहन वधु चिन्ह सपरिवार हे ब्रह्मन् अत्र आगच्छ आगच्छ, स्वस्थाने तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्वाहा ।
बलि मंत्र
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वास्तु चिन्तामणि
ॐ ह्रीं ब्रह्मणे स्वाहा, ब्रह्म परिजनाय स्वाहा, ब्रह्म अनुचराय नमः, वरुणाय नमः, सोमाय स्वाहा, प्रजापतये स्वाहा, ॐ स्वाहा । ॐ भूः स्वाहा, भुव: स्वाहा, भूर्भुव स्वाहा, स्व: स्वाहा स्वधा स्वाहा, हे ब्रह्मण! इदमर्घ्यं पाद्यं जलं, गंध, अक्षतं पुष्पं, दीप, धूपं, चरु, बलि, फलं स्वस्तिक यज्ञ भागं च यजामहे - यजामहे प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा |
(शांतिधारा, पुष्पांजलि क्षिपेत् )
नोट- अर्घ्य के साथ चावल की धानी, घी, शक्कर, खीर और तगर चढ़ाएं इस प्रकार आगे भी जिस जिस देव के जो जो भक्ष्य पदार्थ हैं उन्हें उनके कोठों पर अर्घ्य के साथ चढ़ाएँ । तथा प्रत्येक अर्घ्य के साथ ध्वजा लें। इस प्रकार 49 कोठों पर ही चढ़ाएँ ।
(2) इन्द्रदेव पूजा
हे इन्द्र देव तुम आओ इस यज्ञ मांहि । जो भक्ष्य हैं वो ग्रहण करो यज्ञ मांहि ।। इस यज्ञ में अर्चन मैं करूँ पूजा विधि से। सन्तुष्ट हो सुख करो हम पे विधि से । 12 ।।
ॐ आं क्रौं ह्रीं सुवर्ण वर्णे सम्पूर्ण लक्षण स्वायुध वाहन वधु चिन्ह सपरिवार अग्निदेव अत्र आगच्छ आगच्छ, स्वस्थाने तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्वाहा ।
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