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________________ 232 वास्तु चिन्तामणि है । उदाहरणार्थ पूर्व में पहाड़ी या बहुमंजिली इमारत होने पर हटाई जाना असंभव है। ऐसी परिस्थिति में नियमों के अनुकूल वास्तु निर्माण करने से दोष कम हो जाते हैं। जितना बन सके उतना वास्तु दोष कम आए ऐसी डिजाइन बनाकर ही निर्माण कार्यारम्भ करना चाहिए । वास्तु निर्माण प्रारम्भ करने से पूर्व सुयोग्य मुहूर्त अवश्य निकालना चाहिए। निर्माण कार्य दक्षिण एवं पश्चिम दिशा से प्रारम्भ करना चाहिए। कच्चा मटेरियल भी प्लॉट में इन्हीं दिशाओं में गिरवाना चाहिए। ध्यान रखें कि निर्माण के दौरान भी उत्तर, पूर्व एवं ईशान की तरफ अपेक्षाकृत कम भार रखें। पानी के लिए कुंआ या बोर वेल ईशान की तरफ पहले बनवाना फायदेमंद रहता है। पुरानी सामग्री को प्रयोग न करना श्रेयस्कर होता है, क्योंकि पुरानी वास्तु में उसकी आयु एवं शक्ति पहले ही क्षीण हो चुकी होती है। अन्ततः मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि वास्तु शास्त्र के नियम सभी निर्माण संरचनाओं में लागू होते हैं। चाहे वे बंगले हों या महल अथवा छोटे मकान हों या आधुनिक फ्लैट्स वाले अपार्टमेन्ट्स । पुरुषार्थ के अनुरूप फल मिलना स्वाभाविक ही है। इतना अवश्य है कि पूर्वोपार्जित कर्म तथा वर्तमान कर्मों का मिला जुला परिणाम ही सामने आता है तथा पूर्वोपार्जित कर्म यदि तीव्र हों तो उन्हें किसी सीमा तक भोगना अवश्य पड़ता है। अतएव सत्पुरुषार्थ करने की प्रेरणा देना ही हमारा उद्देश्य है। विवेकी पाठक यदि इसके माध्यम से अपना गृहस्थ जीवन सुखमय एवं निराकुल बनाते हैं, तो ग्रंथकार अपने आपको सफल मानेगा। पाठक धर्म पुरुषार्थ करके वीतरागी अहिंसामयी जिनवाणी का आश्रय लेकर जिन गुरुओं के सदुपदेश से आत्म कल्याण करें। सभी जीवों का कल्याण हो। सभी सुखी हों तथा संसार पाश से मुक्त होकर आत्म कल्याण करें, यही आंतरिक भावना है । इति । सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुख भाग् भवेत् ।। संपूजकानां प्रतिपालकानां यतीन्द्र सामान्य तपो धनानाम् । देशस्य राष्ट्रस्य पुरस्य राज्ञः करोतु शांतिं भगवान् जिनेन्द्रः ।। प्रध्वस्त घाति कर्माणः केवलज्ञान भास्कराः । कुर्वन्तु जगतां शांति वृषभाद्या जिनेश्वराः । । प्रज्ञाश्रमण आचार्य देवनन्दि
SR No.090532
Book TitleVastu Chintamani
Original Sutra AuthorDevnandi Maharaj
AuthorNarendrakumar Badjatya
PublisherPragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
Publication Year
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Art
File Size5 MB
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