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वास्तु चिन्तामणि
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उद्योग वास्तु विचार
Vaastu of Industries आधुनिक युग में उद्योगों का अपना विशिष्ट स्थान है। सामान्यत: उद्योगों से हमारी कल्पना बहदाकृति महाकाय ऊंचे निर्माणों से होती है। चिमनी. बायलर, भट्टी, ऊंची एवं भारी मशीनें, बने हुए माल का आवागमन, अधबना माल, कच्चे माल का भंडारण, कर्मचारियों का कक्ष, निवास गृह आदि का समावेश उद्योग शब्द में स्वाभावतः आ जाता है। उद्योग का आकार भी सैकड़ों एकड़ भूमि में होता है। लघु एवं मध्यम आकार के उद्योग एक भवन से प्रारम्भ कर कुछ एकड़ क्षेत्र तक से हो सकते हैं। उद्योगों से सैकड़ों लोगों को रोजगार भी मिलता है। इनमें पूजी निवेश भी काफी बड़े पैमाने पर होता है। अतएव उद्योग वास्तु को गंभीरता पूर्वक निर्णय लेकर ही निर्मित किया जाना चाहिए। यद्यपि प्राचीन शास्त्रों में पृथक से कारखानों के लिए विवरण नहीं मिलता है किन्तु वास्तु शास्त्र के सामान्य नियमों का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है। इनको दृष्टिगत रखकर ही आगे कुछ संकेत आवश्यक है। इनको दृष्टिगत रखकर ही आगे कुछ संकेत दिए हैं। निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण संकेतों को ध्यान में रखकर तदनुरूप निर्माण करने से अपेक्षित सुपरिणाम निश्चय ही मिलते हैं
काररवाने का भरखण्ड शास्त्रों में वर्णित नियमों को ध्यान में रखकर भूमि का चयन करें। भूखण्ड का आकार वर्गाकार अथवा आयताकार हो। यदि भूखण्ड आयताकार हो तो लम्बाई का मान चौड़ाई से दो गना रखना श्रेष्ठ है।
.'भूखण्ड का ईशान भाग कटा हुआ न हो अन्यथा भीषण विपरीत परिस्थितियां आएंगी। ईशान भाग में न भारी सामान रखें, न भारी निर्माण करें। किसी भी स्थिति में वायव्य भाग बन्द न करें। नैऋत्य कोण सदैव समकोण 90° का ही रखना चाहिए।
परकोटा भूखण्ड के चारों तरफ परकोटा होना श्रेष्ठ है। पूर्व एवं उत्तर की सीमा में नीचा परकोटा रखें, जबकि दक्षिण एवं पश्चिम में अपेक्षाकृत ऊंचा परकोटा रखें। यदि उत्तर एवं पूर्व में तार की फेसिंग रखना हो तो रख सकते हैं किन्तु दक्षिण एवं पश्चिम में पत्थरों या ईंट की दीवाल अवश्य बनाना चाहिए।