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________________ 190 दुकान एवं व्यापारिक भवन प्रकरण वास्तु का निर्माण निवास, व्यापार, कार्यालय, उद्योग, देवालय आदि कई उद्देश्यों के लिए किया जाता है। उद्देश्य को लक्ष्य में रखकर किया गया वास्तु निर्माण शास्त्रानुकूल होने पर अपेक्षित परिणाम प्रदान करता है। दुकान के दृष्टि कोण से भी वास्तु का विचार आवश्यक है। वास्तु चिन्तामणि भूखण्ड पर वास्तु का निर्माण सिर्फ निवास के लिए नहीं होता वरन् व्यापार, उद्योग एवं अन्य कार्यों के निमित्त से भी होता है। दुकानें ऐसी ही वास्तु हैं। यहीं पर निवासी अपनी आजीविका हेतु अर्थोपार्जन करता है। निवास के लिए कैसा भी भवन हो किन्तु यदि आजीविका का स्थान आय प्रदाता नहीं होगा तो निवास का वैभव निरर्थक हो जाएगा तथा उसके समाप्त होने की स्थिति निर्मित हो जायेगी। अतएव यह परमावश्यक है कि दुकान एवं व्यापारिक भवनों के निर्माण में वास्तु शास्त्र के सिद्धान्तों का अनुपालन किया जाए। जिस वास्तु का मुख पूर्व की ओर हो उस वास्तु में दुकान का मुख भी पूर्व की ओर ही होना चाहिए। उसमें रखा गया व्यवहारोपयोगी सामान दक्षिण, नैऋत्य एवं पश्चिम दिशा की ओर रखें। अपने बैठने का आसन नैऋत्य कोने में रखें। अपना मुख उत्तर या पूर्व की ओर रखें। माल दक्षिण नैऋत्य या पश्चिम नैऋत्य में रखना चाहिए। दुकान के उत्तर भाग में दीवाल में बनी आलमारी या कपाट में विक्रय धनराशि रखना चाहिए। उपयोगी कागजात, बिल बुक आदि नैऋत्य दिशा में रखें। तिजोरी भी इसी दिशा में रखें। यदि पृथक से कार्यालय बनाना है तो ईशान में बनाएं। उसमें आसन दक्षिण नैऋत्य या पश्चिम नैऋत्य में रखें तथा बैठने में मुख पूर्व या उत्तर में हो । दुकान यदि स्वतंत्र रूप से निर्माण की गई हो तो कुछ बातों का विशेष ध्यान रखें सगडमुहा वरगेहा कायव्वा तह य हट्ट वग्घमुहा । बाराउ गिहकमुच्चा हट्टुच्चा पुरउ मज्झ समा । । - वास्तुसार प्र. 1गा. 13 घर के आगे का भाग गाड़ी के अग्रभाग के समान संकरा तथा पीछे चौड़ा बनाना चाहिए। दुकान के आगे का भाग सिंह मुख अर्थात् चौड़ा बनाना
SR No.090532
Book TitleVastu Chintamani
Original Sutra AuthorDevnandi Maharaj
AuthorNarendrakumar Badjatya
PublisherPragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
Publication Year
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Art
File Size5 MB
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