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वास्तु चिन्तामणि
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पूजा करने की दिशा का फल पश्चिमाभिमुखः कुर्यात् पूजा चेच्छ्रीजिनेशिनाम्। तदास्यात्संततिच्छेदो दक्षिणस्यामसन्ततिः।। आग्नेयां च कृता पूजा धनहानि दिनेदिने। वायव्यां संतति व नैऋत्यां तु कुलक्षयः।। ईशान्यां नैव कर्तव्या पूजा सौभाग्यहारिणी। पूर्वस्यां शान्तिक: स्यादुत्तरस्यां धनाप्तये।। दिशा
परिणाम ईशान
सौभाग्य हानि आग्नेय
धन हानि नैऋत्य
कुल क्षय
वायव्य
संतान अभाव
उत्तर
पूर्व
सुरख, शाति, समाधान प्राप्ति पश्चिम
संतति मरण
धन-धान्य, वैभव, प्रतिष्ठा प्राप्ति दक्षिण
संतान अभाव एक विशेष बात ध्यान में अवश्य रखना चाहिए कि पूजा करने वाले को चंदन से नौ अंगों में तिलक लगाकर ही पूजा करनी चाहिए अन्यथा इष्ट कार्य की सिद्धि नहीं होती।