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वास्तु चिन्तामणि
चारों तरफ नींव की भूमि को अर्थात् दीवार करने की भूमि को छोड़कर मध्य में जो लम्बी और चौड़ी भूमि हो उसको गृहस्वामी के हाथ से नाप कर जो लम्बाई चौड़ाई आवे, उनका आपस में गुणा कर क्षेत्रफल निकालें। उसे 8 से भाग देने पर जो शेष आए उसे आय जानना चाहिए।
आय की सारणी | शेष | ।। 2 3 4 5 6 7 8
आय | ध्वज | धूम्र | सिंह | श्वान | वृष | खर गज | ध्वाक्ष | दिशा पूर्व | आग्नेय | दक्षिण नैऋत्य पश्चिम वायव्य उत्तर ईशान | इनमें विषम अंक वाली आय शुभ तथा सम अंक वाली अशुभ हैं।
गृह चैत्यालय प्रतिमा प्रकरण प्रतिमा काष्ठ लेपाश्म दन्त चित्रायसा गृहे। मानाधिका परिवार रहिता नैव पूज्यते।।
- शिल्प रत्नाकर 9 काष्ठ, पाषाण, लेप, हाथीदांत, लौह और रंग से चित्रित कर बनाई गयी प्रतिमा तथा ग्यारह अंगुल से बड़ी प्रतिमा अपने गृह चैत्यालय में नहीं रखना चाहिए।
इसके अतिरिक्त बिना परिकर की अर्थात् सिद्धों की प्रतिमा भी गृह चैत्यालय में नहीं रखना चाहिए। मल्लिनाथ, नेमिनाथ तथा वीरप्रभु की प्रतिमाएं भी गृह चैत्यालय में न रखें, शेष इक्कीस तीर्थंकरों की . प्रतिमाएं रखना चाहिए। इन तीन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं बालयति होने के कारण अतिवैराग्यकर होने से गृहस्थ के गृह चैत्यालय में रखना अनुपयुक्त माना जाता है। इस बारे में श्री सकलचंद्रोपाध्याय कृत प्रतिष्ठाकल्प में उल्लेख
मल्ली नेमी वीरो गिह भवेण सावए ण पूइज्जइ। इगवीसं तित्थयरा संतिगरा पूइया वन्दे ।।