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वास्तु चिन्तामणि
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गृह चैत्यालयों को विभिन्न हिगाओं में बनाने के परिणाम | कं. दिशा
परिणाम | | पूर्व
ऐश्वर्य लाभ, मान सम्मान, प्रतिष्ठा प्राप्ति आग्नेय
पूजा, आराधना निष्फल दक्षिण
शत्रु बाधा में वृद्धि नैऋत्य
भूत पिशाच बाधा में वृद्धि पश्चिम
ऐश्वर्य हानि, धन नाश वायव्य
रोग उत्पत्ति उत्तर
धन लाभ, ऐश्वर्य प्राप्ति | ईशान
सुख, शाति, सर्वकार्य सफलता इस प्रकार दिशाओं का ध्यान रखकर समुचित आगमानुकूल माप से वेदी का निर्माण शुभ फलदायक दिशा में करना चाहिए।
भित्ति संलग्नबिम्बश्च पुरुषः सर्वथाऽशुभः। चित्रमयाश्च नागाद्या भित्तौ चैव शुभावहा।।
___ - द्वादश रत्न, शिल्प रत्नाकर 205 दीवाल से स्पर्श कर स्थापित की हुई मूर्ति सर्वथा अशुभ फल देने वाली होती है, किन्तु चित्र बने हुए नागादि देव दीवाल पर बनाए जाएं तो शुभ फल देने वाले होते हैं। दीवाल में बने हुए आले अथवा आलमारी, कपाट आदि में स्थापित की हुई प्रतिमा शुभफल नहीं देती हैं। अत: घर में माप के अनुसार शुभ आय से सहित वेदी बनाकर प्रतिमा की स्थापना करना चाहिए। स्थिरं न स्थापयेद् गेहे गृहीणां दुख कृद्धयत।
- शिल्पस्मृति वास्तुविद्यायाम् 130 गृह चैत्यालय में कभी भी स्थिर प्रतिमा स्थापित नहीं करना चाहिए। यह गृहस्थ के लिए दुख का कारण होती है।
गिह देवालं कीरइ दारुमय विमाणपुष्फयं नाम। उदवीढ पीठ फरिसं जहुत्त चउरंस तस्सुवरि।।
- वास्तुसार प्र. 3 गा. 63