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________________ 178 वास्तु चिन्तामणि गृह चैत्यालय Worship Place at Home जैनाचार्यों ने श्रावक के छह आवश्यक कर्तव्य कहे हैं। वे इस प्रकार हैं1. देव पूजा 2. गुरु उपासना 3. स्वाध्याय 4. संयम 5. तप 6. दान इनमें भी देवपूजा एवं दान को सर्वाधिक उपयोगिता वाला माना गया है। श्रावकों को अपने आवश्यक कर्तव्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक है कि वे अपनी धार्मिक क्रियाओं को पूरा करने के लिए अनुकूल चैत्यालय आदि में जा सकें। साधारणत: नगरों में एवं ग्रामों में भी जिन मंदिरों में जाकर पूजनादि कार्य किए जाते है किन्तु अनेको स्थानों पर या तो मंदिर नहीं है अथवा श्रावक के निवास से इतनी दूर हैं कि वह मन्दिर तक दैनिक रूप से नहीं जा पाता। श्रावक के व्यवसाय अथवा सेवारत होने पर भी कई बार यह संभव नहीं हो पाता है। नगर या ग्राम में मन्दिर हो या न हो, प्रत्येक श्रावक को अपने निवास में एक पृथक् चैत्यालय अवश्य ही बनवाना चाहिए ताकि परिवार की धर्मसाधना तथा बालकों में धार्मिक संस्कारों का आरोपण हो सके। यदि गृह चैत्यालय में जिन प्रतिमा स्थापित करना शक्य न हो तो एक कक्ष में जिनेन्द्र देव, तीर्थक्षेत्रों तथा मनियों के अच्छे चित्र अवश्य ही स्थापित करना चाहिए। अपनी धर्माराधना, भजन, स्तुति, आरती आदि वहां पर अवश्य करनी चाहिए। वास्तु शास्त्र के नियमों को ध्यान में रखते हुए यदि गृह चैत्यालय की स्थापना की जाएगी अर्थात् दिशाओं का समुचित ध्यान रखा जाएगा तो निश्चय ही वहां पर किए गए पूजा-पाठ, आरती, स्वाध्याय, जप, उपासना आदि शुभ कार्य हमारे लिए शुभ फल दाता होंगे; पुण्यासव का कारण बनेंगे तथा पारिवारिक सुख-शांति, धन-धान्य वृद्धि, समृद्धि आदि प्राप्त होगी। वास्तु शास्त्रों में देव पूजा के लिये ईशान दिशा सर्वाधिक उपयुक्त मानी गई है। इस दिशा में गृह चैत्यालय स्थापित करने से इच्छित फल की प्राप्ति होती है। परिवार में सभी को सुख-शांति एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है। ईशान दिशा का महत्त्व इसलिए अधिक है क्योंकि यह दोनों उत्तम दिशाओं यानि पूर्व एवं उत्तर के मध्य में स्थित है। दोनों दिशाओं का सुप्रभाव इस दिशा में प्राप्त होता है। जैनेतर परंपराओं में भी ईशान दिशा को ईश्वर या परमात्मा की दिशा माना जाता है तथा इसे ही ईश्वर पूजा के लिए उपयुक्त माना गया है।
SR No.090532
Book TitleVastu Chintamani
Original Sutra AuthorDevnandi Maharaj
AuthorNarendrakumar Badjatya
PublisherPragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
Publication Year
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Art
File Size5 MB
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