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________________ वास्तु चिन्तामणि धरातल प्रकरण Floor Level 175 वास्तु शास्त्र की मान्यता के अनुसार धरातल का स्वाभाविक उत्तार पूर्व दिशा अथवा उत्तर दिशा की ओर होना श्रेष्ठ माना जाता है। घर के सामने का भाग भी नीचा हो तथा पीछे उत्तरोत्तर ऊंचा होता जाना चाहिए। धरातल पर जो फर्श बनाया जाता है वह फर्श भी इसी अनुसार उतार वाला बनाया जाना चाहिए। निर्माण का मुख उत्तर या पूर्व की ओर होने पर तो फर्श या तल का उतार अवश्य ही उत्तर था पूर्व की ओर होना चाहिए। यह आशानुकूल परिणाम देता है। घर में आपसी मेल मिलाप, सूझबूझ तथा सुख शान्ति के लिए यह आवश्यक है। दक्षिण या पश्चिम दिशा की ओर उतार होने पर स्वामी को धनहानि एवं परेशानियां निरंतर बनी रहती हैं। अतएव निर्माण कार्य में तल के उतार का ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है। यह भी स्मरणीय है कि स्नानगृह का निकला हुआ जल प्रवाह तथा वर्षा का एकत्र जल भी नैसर्गिक या निर्माण किए हुए तल से उत्तर या पूर्व की ओर ही प्रवाहित हो। यह जल सामने कीचड़ के रूप में एकत्र न हो यह भी आवश्यक है। यह जल न तो जमाव बनाए, न ही अपने घर से बहकर अन्य के घर में जाकर एकत्र हो या बहे। अन्यथा अशुभ, धनहानि, वादविवाद, गृहकलह तथा आपसी विश्वास की हानि जैसे परिणाम समक्ष में आते हैं। दूसरे के घर का पानी अपने घर में आना हानिकारक होता है। अपने घर का पानी उत्तर, पूर्व या ईशान दिशा में प्रवाहित होता है तो शुभ फलदायक हैं| आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम, वायव्य दिशा में जल बहने से मृत्यु, दुख, रोग, क्लेशादि होता है। शत्रु, संताप, धननाश, अग्निभय भी होने की संभावना है। घर का पानी बाहर न जाकर अपने वास्तु में ही रूक जाना भी अशुभ है। 1
SR No.090532
Book TitleVastu Chintamani
Original Sutra AuthorDevnandi Maharaj
AuthorNarendrakumar Badjatya
PublisherPragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
Publication Year
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Art
File Size5 MB
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