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वास्तु चिन्तामणि
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अष्टम खण्ड में भवन की आवश्यकतानुसार पृथक पृथक कक्ष एवं स्थान बनाने का व्यवहारिक निर्देशन किया गया है। विभिन्न कक्षों को अन्य स्थानों में बनाने के परिणाम भी दिए गए है। उदाहरण के लिए रसोईघर का सर्वोत्तम स्थान भवन का आग्नेय भाग है। भारी सामान कक्ष दक्षिण या नैऋत्य दिशा में रखना चाहिए। पूजा कक्ष ईशान में होना सर्वश्रेष्ठ है। इस प्रकार अलग-अलग प्रकरणों में रसोईघर, शयन कक्ष, भारी सामान कक्ष, सीढ़ियां, शो केस, औषधि, अस्त्र, पालित पशु इत्यादि के पृथक-पृथक प्रकरण हैं, जिनमें भूखण्ड की स्थिति के अनुसार इन कक्षों का निर्माण करना चाहिए। गृहिणी प्रकरण में गृह स्वामिनियों के लिए घुग में व्यवहारिक संकेत सुगम भाषा में वर्णित हैं। यद्यपि वर्तमान से पृथक प्रसूति कक्ष, शोक संवेदना कक्ष अनावश्यक समझे जाते हैं किन्तु शास्त्र में प्राचीन काल की सामयिक आवश्यकताओं के अनुसार वर्णन किया गया है। राजभवन, प्रासाद, महल आदि विशाल संरचनाओं में कदाचित यह संभव भी हो सकता है।
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स्नानगृह, शौचालय प्रत्येक घर में निर्मित किए जाते हैं किन्तु इनको अशुभ दिशाओं में निर्मित करना दुर्भाल को आमंत्रण से कम नहीं है। चरा एवं पत्थर - कोयले के ढेर के लिए भी संकेत दिए हैं। जल कूप प्रकरण में न केवल जलकूप की स्थिति का परामर्श है वरन् जल शोधन विधि भी है जिनमें निर्देशित विधि से कुआं खोदने का स्थान निर्धारित करना आसान हो जाता है। जल निकास विचार भी दृष्टव्य है। धरातल प्रकरण विभिन्न दिशाओं में फर्श में ऊंचापन, नीचापन का शुभाशुभ फल निर्देशित करता है ।
नवम खण्ड गृह चैत्यालय से संबंधित है। उत्तर भारत में गृह चैत्यालय की प्रथा कम हो गई है। गृहस्थ प्रतिमाएं घर के स्थान पर मन्दिर में ही रखना ठीक समझते हैं। किन्तु दक्षिण भारत में जैन धर्म की प्राचीन परम्पराएं आज भी जीवित हैं। सामान्यतः प्रत्येक जैन श्रावक के आवासगृह में एक कमरा जिन - प्रतिमा से युक्त होता है। जिसमें वह दैनिक पूजा पाठ सामायिक इत्यादि क्रियाएं करता है। यह प्रकरण जिन प्रतिमाओं के आकार तथा उनके सदोष होने के फल का वर्णन करता है। उमास्वामी श्रावकाचार में एक से ग्यारह अंगुल तक की प्रतिमाओं को ही घर में रखना उपयुक्त कहा है। दीवालपर चित्र आदि बना सकते हैं, किन्तु प्रतिमा स्थिर एवं दीवाल से चिपकी न हो। कलश चढ़ाने का भी स्पष्ट निषेध किया है, हां आमलसार चढ़ा सकते हैं। यह प्रकरण अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। श्रावक किंचित् असावधानी से अनावश्यक दुख भोगता है। अतएव यह प्रकरण सबके लिए विशेष रुप से
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