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वास्तु चिन्तामणि
चौखट एवं देहरी विचार
Door Frames दरवाजे लगाने के लिए चौखट लगाना आवश्यक होता है। दरवाजे में एक ही लकड़ी की चौखट तैयार करके लगाना चाहिए। वर्तमान में चौखट में नीचे की लकड़ी जिसे देहरी या देहली कहा जाता है, लगाने का प्रचलन कम हो गया है किन्तु वास्तुशास्त्र की धारणा के यह प्रतिकूल है। चौखट में नीचे लकड़ी अर्थात् देहरी न होने से वह तीन लकड़ी की अर्थात् त्रिखट हो जाती है। देहरी विहीन चौखट सफलता में आधा उत्पन्न करती है।
जिन धर्म में चैत्यालय को भी नव देवताओं में माना गया है तथा चैत्यालय रूप देवताओं को नमस्कार करने के लिए चैत्यालय द्वार की देहरी को श्रद्धापूर्वक स्पर्श कर नमन करना पड़ता है। अतएव चैत्यालय देवता की आराधना के लिए देहरी का अपना पृथक महत्त्व है। इसी परम्परा में गृह द्वार के समक्ष चौक पूरना, रंगोली की चित्रकारी करना तथा देहरी पर कुमकुम हल्दी लगाकर जिनालय की उपासना करना आदि कर्म महिलाओं के द्वारा किये जाते हैं।
देहरी का व्यवहारिक महत्त्व भी है। यह घर की सुरक्षा के लिए भी उपयोगी है। रेंगकर चलने वाले प्राणी सर्प, बिच्छू, गोड, छिपकली आदि अनायास ही प्रवेश नहीं कर पाते। अतएव सभी दृष्टियों को ध्यान में रखकर वास्तु की चौखट एवं देहरी सही तरीके से निर्माण करना उत्तम है।