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वास्तु चिन्तामणि
129 एक अन्य विवेचन इस प्रकार है
गृहोत्सेधेन वा त्र्यंशहीनेन स्यात् समुच्छ्रितिः।
तदर्द्धन तु विस्तारो द्वारस्येत्यपरो विधि।। घर की ऊंचाई के 2/3 भाग द्वार की ऊंचाई रखें तथा उसका 1/2 भाग द्वार की चौड़ाई रखें। उदाहरण के लिए घर की ऊंचाई-फर्श से छत तक 12 फुट है तो व्यर की ऊंचाई 8 फुट तथा द्वार की चौड़ाई 4 फुट रखना चाहिए।
दरवाजे के लिए कुछ विशेष सिद्धांत 1. दरवाजे की चौड़ाई एवं ऊंचाई शास्त्रानुकूल निर्माण करने से स्वामी को
गृह एवं व्यापार कार्यों में कष्ट नहीं होता। 2. दरवाजे एक कतार में होना चाहिए। 3. दरवाजे सीधे न होने से धनहानि होती है।
दरवाजे खोलते बन्द करते समय आवाज निकलना अशुभ एवं भय
उत्पन्न करता है। 5. दरवाजे बाहर की ओर न खुलकर भीतर की ओर खुलना चाहिए अन्यथा
घर में रोग शोक बना रहता है। सामने के दरवाजे की अपेक्षा पीछे का दरवाजा कुछ कम ऊंचाई का होना चाहिए। दरवाजा अपने आप खुलने बंद होने वाला नहीं होना चाहिए अन्यथा
कुलक्षय, भय तथा स्वास्थ्य हानि की संभावना है। 8. दरवाजे में चीर या दरार पड़ने से घर में दरिद्रता आती है। 9. दरवाजे पर रंग की पपड़ियां निकलने से बाहर के लोग चर्चा एवं मजाक
बनाते हैं। 10. दरवाजे के ऊपर कोई दाग होने से दुख होता है।
दरवाजे के बीच का जोड़ अच्छी तरह जुड़ा होना चाहिए अन्यथा
परेशानियां आती हैं। 12. चौखट में नीचे की देहली अवश्य ही होनी चाहिए। 13. दरवाजे के ऊपर का भाग टेढा होने से गृहस्वामी को पीड़ा होती है। 14. दरवाजे के अन्दर की ओर झुके हुए होने से घर में किसी की मृत्यु
होती है। दरवाजा बाहर की ओर झुका हुआ होने पर अचानक ही गृहस्वामी गृहत्याग कर भाग जाता है। घर में चोरी का भय होता है।
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