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वास्तु चिन्तामणि
पश्चिम में पूर्व की अपेक्षा अधिक रिक्त स्थान छोड़ना पुरुषों को ऐसा ही फल देता है। कालांतर में ऐसे मकानों का निर्माण कर्ता उपभोग नहीं कर पाते, अन्य ही उपभोग करते हैं। (चित्र नं - 3 )
1.
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कोण की को
अपेक्षा
किसी भी स्थिति
काटें नहीं। नैऋत्य कोण ठीक
समकोण रहना अत्यंत आवश्यक है। नैऋत्य कोण काटना हानिकारक
है।
2. नैऋत्य में समकोण होने पर ईशान कोण में बढ़ाव करना अत्यंत फायदेमंद है।
3. पूरी वास्तु के साथ ही प्रत्येक कमरे में भी नैऋत्य कोण समकोण रहना अत्यंत आवश्यक है अन्यथा दुर्भाग्य को आमंत्रण होगा।
4. यदि नैऋत्य कोण कुछ ऊंचा करा दिया जाता है तथा नैऋत्य कोण किचित काटा जाता है तो ईशान के बढ़ाव का असर मिलने से शुभ फल दायी होगा।
5. नैऋत्य कोण का बढ़ाव दक्षिण की ओर किया जाने पर महिलाओं को अशुभ होगा। जबकि इसका बढ़ाव पश्चिम की ओर होने पर पुरुष दुख उठायेंगे।
6. नैऋत्य कोण का बढ़ाव नैऋत्य की ओर होने पर शत्रुता, मुकदमेबाजी, कर्ज भार आयेगा |
7. यदि सारे मकानों का ईशान कटा हो क्योंकि सामने उत्तरी या पूर्वी तिरछी सड़क हो तो ऐसे नैऋत्य प्रभाग में हानि नहीं होगी। विपुल धनागम होगा किंतु निवासी धनलोलुपी एवं स्वार्थी होंगे। ऐसे मकानों के निवासी अपराधी वृत्ति के, बहु हत्यारे, मनोभ्रम या सनक के कारण आत्महत्या के करने वाले तथा असाध्य रोग से पीड़ित देखे जाते हैं।
तल की अपेक्षा
1.
नैऋत्य का कमरा अन्य कमरों से ऊंचा हो ।
2. जितना ईशान का तल नीचा होगा, उतना ही नैऋत्य का तल ऊंचा होना आवश्यक है तभी अत्यंत सुखदायक एवं शुभ होगा ।
3. नैऋत्य की अपेक्षा आग्नेय तथा वायव्य नीचा होना चाहिये।