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दरवाजे की अपेक्षा
1. दक्षिण में द्वार धनी बनाते हैं। ऐसे द्वार ठीक दक्षिण मैं दक्षिणाभिमुखी हों। 2. दक्षिणी द्वार यदि आग्नेय मुखी हों तो अग्निभय, चौरभय, मुकदमेबाजी का संकट होने की संभावना होती है।
दक्षिणी द्वार नैऋत्याभिमुखी होने की स्थिति में दीर्घरोग, शत्रुता, अकालमृत्यु की आशंका का निर्माण होता है।
3.
अन्य संकेत
निर्माण कार्य दक्षिणी सीमा से प्रारम्भ करें। (चित्र द - 4 )
कम्पाउन्ड वाल तथा अन्य दीवाले दक्षिण की अपेक्षा उत्तर की नीची हो तो शुभ है।
3. प्रमुख प्रवेश दक्षिण में तथा दोनों तरफ खुला चबूतरा होने की परिस्थिति में उत्तर में छपरी अवश्य बनाएं तथा दक्षिण की तरफ निकास निकालें। (चित्र ६-६ )
4. प्रमुख प्रवेश द्वार से कम्पाउन्ड वाल ऊंची या नीची इच्छानुसार रखें। (चित्र द - -4)
5. दक्षिणी पार्श्व में सड़क न होने पर कम्पाउन्ड वाल अवश्य उठाएं। (चित्र
7.
2.
द- 4}
6. दक्षिण में झुकावदार छपरी अत्यंत अशुभ है । (चित्र द - 4 )
7.
उत्तर में छपरी अधिक झुकाव की बनाएं। (चित्र द- 4)
8.
दक्षिण में पोर्टिको बिना स्तंभ का बनाएं। छत से इसे बढ़ाकर बनाएं तथा फर्शतल मकान के फर्श तल से नीचा न हो। अन्यथा विपरीत फल
होगा ।
छपरी
नीचापन
निर्माण
प्रारंभ
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चित्र द
वास्तु चिन्तामणि
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