________________
88
3.
1.
2.
3.
4.
5.
वास्तु चिन्तामणि
ईशान में रिक्त भूमि मिले तो अवश्य ही ले लेना चाहिये तथा भूखण्ड के ईशान बिंदु का निर्धारण कर इसके अनुरूप नैऋत्य में एक छोटा सा कमरा बनाना चाहिये । यदि लिये गए ईशान के भूखण्ड से मूल भूखण्ड में आने जाने का सुगम मार्ग हो तो यह भूखण्ड बहुमूल्य होने पर भी अत्यंत लाभकारी साबित होगा।
ईशान कोण की अपेक्षा
ईशान कोण में चढ़ाव होना अशुभ, धनहानि, वंशहानि, पारिवारिक संकट का कारण होता है।
ईशान कोण में यदि पूर्व व उत्तर की सड़कों से विस्तार हुआ हो तो ऐसे भूखण्ड के नि वैभवशाली, अति बुद्धिमान संतति, नैतिक एवं त्यागमय जीवन के धारी होते हैं।
ईशान कोण का विस्तार पूर्व की ओर हो तो निवासी धनी, प्रसिद्ध तथा न्यायप्रिय होंगे। (चित्र ई - 4 )
चित्र ई
-4
विस्तार
W
N
E
चित्र ई
-5
विस्तार
5
ईशान कोण का विस्तार उत्तर की ओर हो तो धनागम होने के बावजूद दुर्घटनाभय बना रहेगा। (चित्र ई - 5 )
ईशान कोण में विस्तार प्रति 100 फुट पर 2 फुट करने से वास्तु का संपूर्ण शुभ प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।
मार्गारम्भ बिन्दु
यदि पूर्वी ईशान से मार्गारिम्भ हो तो निवासी नाम, यश पाता है।
2. यदि उत्तरी ईशान से भार्गारम्भ हो तो संततियों तक समृद्धि की प्राप्ति
होती है।