________________
वर्धमानचम्पू:
15
राजभवन समेत्य तेनाने के मांगल्योत्सबास्तेनिरे। जातैस्तैर्देवविहित्सोत्सवः कुलपुरोय परमाणु संकृतः गुजरचाभवत् । मातुनिशलायाः स्तुति कुर्वाणेन शक्केण तेन तदा भणितम्-मातस्त्वमेव जगन्माताऽसि यतस्तथायं सुतो विश्वोद्धारको भविष्यति । अपारसंसारसंतमसान्धीकृतेऽस्मिन् जोवलोके सज्ञानप्रदायकत्वात् प्रकारापुञ्जनिमोऽयं ते सुपुत्रः सुपथप्रकाशको भूत्वा संसृतिस्थानां भ्रमं चाज्ञानं निरस्य तेषां विश्वेषां मंगलपथप्रदर्शकश्रादर्शनररत्नं दिनमणिरिव स्वगोभिश्चकासिष्यति, धन्या वर्मास, अधुना स्वादृशी सौभाग्यवती सुतवत्तो भामिनी काप्यन्या जगति नास्ति ।
राजभवन में आकर उसने अनेक मांगल्योत्सव किये । देवों द्वारा किये गये उन उत्सवों से कुण्डलपुर का एक एक परमाणु झंकृत और गुजित हो उठा । उस समय त्रिशला माता की स्तुति करते हुए इन्द्र ने कहा-हे माता ! तुम जगत् की माता हो, क्योंकि आपका यह पुत्र विश्व का उद्धारकर्ता होगा । अपार संसाररूपी गाढ़ अन्धकार से मंधीभूत इस जीवलोक में सम्यग्ज्ञान का प्रदाता होने के कारण वह प्रकाशपुञ्ज जैसा होगा और सुपथ का प्रदर्शक होकर वह संसारस्थ भ्रम और अज्ञान का निरसन करेगा तथा समस्त प्राणियों को उनके मंगलकारक मार्ग का प्रकाशक होगा । यह एक आदर्श नररत्न बनकर सूर्य के समान अपनी वाणी के द्वारा संसार में चमकेगा । माता ! तुम धन्य हो । इस समय तुम्हारी जैसी सौभाग्यवती एवं पुत्रवती माता इस जगत् में दूसरी कोई पौर नारी नहीं है।