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अर्धमानचापुः
गया कुशीनारस्थलम्
ज्ञानप्राप्तिस्थानं-ऋजुकलासरित्तटम् निर्वाणप्राप्तिस्थानम् -- पावापुरी निर्वाणप्राप्तिः-ईस्वी पू० ५२७
आयुष्यम्-७२ वर्ष प्रमाणम् रतम्-पंचमहानतम् सिद्धान्त:-क्यादादः
५० वर्ष प्रमाणम्
पंचशीलम् क्षणिकवावः
तत्रैव महानिकाये महानामाख्यं स्वविनेयं संबोध्य गौतमबुद्धेन यदुक्तं तदत्र संक्षेपतः प्रतिपाद्यते-तदित्थम्
।
हे महानाम ! कदाचिदहं राजगृहस्य गृहकूटनाम्नि गिरावभ्राम्यम् । संभ्रमता मया तदा ऋषिगिरेरभ्यणे कालशिरोपरि बहयौ निम्रन्थाः सुध्याननिमग्नस्वान्ता पल्यांकासनसंस्थिता अवलोकिताः । सायंकाले तेषां सविधे गत्वा मया ते पृष्टाः ।
महानिकाय में गौतमबुद्ध ने महानाम के शिष्य को सम्बोधित करके जो कहा, वह यहां संक्षेप से कहता हूं-बह इस प्रकार है
हे महानाम ! मैं किसी समय राजगृह के गृहफूट नाम के पर्वत पर घूम रहा था । उस समय मैंने ऋषिगिरि के निकट कालपियर के ऊपर अनेक निर्ग्रन्थों को देखा । ये सब प्रात्मध्यान में लीन थे, पद्मासन मे विराजमान थे । सायंकाल के समय मैं उनके पास गया ग्रोर उनसे पूछा