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वर्धमानः
प्रस्थ प्रभोः संस्मृतौ बंगाल - बिहार सत्कानामनेकेषां नगराणां नामानि तन्नामानुरूपाणि धृतानि समुपलभ्यन्ते । यथा तज्जन्मनाम्नि वर्धमाने वर्धमानेति, तद्वीरनाम्नि वीरभूमिरिति, तदत्रि चिह्नस्य ध्वजचिह्नस्य च नाम्नि सिंहभूमिरिति नाम सांप्रतमपि प्रयातमस्तीति ।
शार्दूल चिह्नपरिमंड
वर्धमान !, तुभ्यं नमोऽस्तु जगदेकशरण्यभूत ! । प्रस्थां कृतौ तव पवित्र चरित्रमेतत्
वृब्धं सुभक्तिवशतस् त्रुटिरत्रया ।। ५४ ।।
मग्नः,
संसारगाढतमसीह चिरेण
कर्मारिणा हृतविबोधधनोऽस्मि रिक्तः । एकाक्यनाथ इव नाथ ! भ्रमामि मार्ग,
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मामादिशत्वमधुना शरणागतोऽस्मि ।। ५५ ।।
इस प्रभु की याददाश्त के निमित्त बंगाल विहारान्तर्गत अनेक नगरों के नाम प्रभु के नाम के अनुरूप रखे गये हैं। जैसे प्रभु के जन्म के नाम वर्धमान पर नगर का नाम " वर्धमान", प्रभु के वीर नाम पर नगर का नाम "वीर भूमि " तथा प्रभु के चरण के और ध्वज के विल स्वरूप सिंह के नाम "सिंह भूमि” रखा गया। ये नाम अभी तक प्रचलित चले प्रा रहे हैं ।
हे शार्दूल के चिह्न से अङ्कित श्री वर्धमान प्रभो ! आपको मेरा नमस्कार हो । क्योंकि आप जगत् के अद्वितीय रक्षक हैं । अतः अत्यन्त भक्तिपूर्वक हे नाथ ! मैंने आपका यह पवित्र चरित्र इस कृति में गूंथा है । यदि इसमें कोई त्रुटि हो तो उस पर ध्यान नहीं देना ।। ५४ ।।
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हे नाथ ! मैं इस संसाररूपी गाढ अन्धकार में चिरकाल से मग्न हो रहा हूं भटकता श्रा रहा हूं। यहां कर्मरूपी शत्रुत्रों ने मेरा सम्यग्ज्ञानरूपी धन लूटकर मुझे बिल्कुल निर्धन बना दिया है । यतः हे प्रभो ! अनाथ की तरह मैं अकेला चारों गतियों में बिना सहारे के इधर-उधर चक्कर काट रहा हूं | यहां से पार होने का मार्ग मुझे मिल नहीं रहा है। इसलिए हे प्रभो ! मुझे आप मार्ग बताव- मैं तो आपके चरणों की शरण में पड़ा हुआ हूं ।। ५५ ।।