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संकल्पबुद्धया न कदापि हिंसा श्राविधेया पराहिंसावतं
संरक्षणीया यतना
बर्धमानम्पू:
कायिकानाम् ।
श्राद्धजनस्य
चतस् ॥ ४८ ॥
यज्ञे हुतो गच्छति देवलोकं जीवस्तथा कारयिताऽथ कर्ता । जुहोति किं न स्वं तथा च बन्धूनतो वधो नास्ति कदापि धर्म्यः ॥ ४६ ॥
वीरवाणीप्रमायः
यदा नामाङ्कित विद्धौरेयो विप्र इन्द्रभूतिर्महावीरस्यापश्चिमो शिष्योऽजनि तदा जनतायां विद्वद्वृन्दे चास्या:
ऽग्रगण्यः
घटनायाः
क्रान्तिकारः प्रभावः प्रसतो जातः परितः । इन्द्रभूति गौतम समावेद
श्रावक का यह कर्तव्य है कि वह संकल्पपूर्वक किसी भी अस जीव की हिंसा नहीं करे और जो स्थावर जीव हैं उनके प्रति यत्नाचारपूर्वक वर्ते, यही उनका अहिंसा व्रत है ।। ४८ ।।
यज्ञ के निमित्त मारा गया -- होमा गया - जीव यदि देवलोक स्वर्ग में जाता है, तो जो यज्ञ करता है और जो उसे कराता है वह क्यों नहीं अपने आपको और अपने बन्धुजनों को यज्ञ में होम देता है । इसलिए हिंसा- -यज्ञ के निमित्त किया गया प्राणिव भी धर्मरूप नहीं है ॥ ४६ ॥
बीरवाणी का प्रभाव
जब नामाङ्कित विद्वद्वरेण्य विप्र इन्द्रभूति गौतम महावीर के अग्र गण्य सर्वप्रथम शिष्य बन चुके तब जनता में एवं विद्वद्वृन्द में इस घटना का क्रान्तिकारक प्रभाव पड़ा । इन्द्रभूति गौतम के जैसे ही उसके अन्य
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