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वर्धमानचम्पूः
इत्यं संस्तुतो भगवान् महावीरोऽधुना सर्वज्ञाता सर्यवर्शी संजातो यदा कतिपयविशिष्टचिह्नः सौधर्माधिपतिना शकेणेति विज्ञातं तदंतसुक्ष्न्तं रम्योचर्कान्त विज्ञाय सस्यामन्दानन्दोरकर्षः पराकाष्ठामियाय । तत्कालमेव तेन स्वकीय कोषाध्यक्षमाहूय कथितं यत्त्वं तीर्थंकरस्य महावीरस्य महोपदेशो विश्व कल्याणकारी सर्वसाधारण जनताकृते स्यावतएवंफ सवंमनोहरं भव्यं विस्तृतं व्याख्यानसभामंडपं निर्मापय ।
तदाज्ञां प्रमाणीकृत्य कुबेरेणाशु दिव्यसाधनंरेकोऽतिविशालो मनोहरः सभामण्डपो निर्मापितः । प्रासीवयं विभिप्रैश्चतुभिश्च गोपुरैः समलकृतः, द्वाराणि च भानस्तम्भकर्मानस्तम्भः सनाढ्यान्यासन् । तव्याख्यानसमामंडपे तिसृभिः कटिनीभिः परिक्षिप्ता रम्यको वेदिका
इस प्रकार जनता द्वारा पूजित भगवान् महावीर अब सर्वज्ञाता सर्वदर्शी हो चुके हैं ऐसा जब कतिपय विशिष्ट चिह्नों द्वारा सौधर्माधिपति शक्र ने जाना तो उसके प्रानन्द का पारावार नहीं रहा । उसी समय उसने अपने कोषाध्यक्ष कुबेर को बुलाया और उसे आदेश दिया कि तुम तीर्थंकर भगवान महावीर का विश्वकल्याणकारी महोपदेश सर्वसाधारण जनता के लिए लुलभ हो इस निमित्त एक सर्वमनोहर भव्य विस्तृत व्याख्यानसभा-मण्डप का निर्माण करो।
इस आज्ञा को शिरोधार्य करके कुबेर ने शीघ्र ही दिव्य साधनों द्वारा एक भव्य अतिविशाल चित्ताकर्षक सभामण्डप तैयार करा दिया । वह व्याख्यानमण्डप तीन कोटों और चार गोपुरों से, मानी के मान को गलित करनेवाले मानस्तम्भों से युक्त था। उस व्याख्यानसभामण्डप में तीन कटनियों से घिरी हुई एक सुन्दर वेदिका थी । इसका दूसरा नाम गंध