________________
वहां से मुक्त होकर इन्होंने दिगम्बर जैन क्षेत्र पपौरा के वीर विद्यालय में पांच वर्ष तक अध्यापन कार्य किया जहां से दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी स्थित मुमुक्ष महिलाश्रम की तत्कालीन संचालिका स्व० ब्रह्मचारिणी कृष्णाबाई इनको श्रीमहाबीरजी ले आई। तत्पश्चात १६ वर्ष तक इन्होंने ब्रह्मचारिणी कमलाबाई के आदर्श महिला विद्यालय में धर्माध्यापक के रूप में कार्य किया । इनकी योग्यता, विद्वत्ता, सादगी आदि गुणों का समादर करते हुए दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीर की प्रबन्धकारिणी कमेटी ने प्रावास आदि की सुविधाएं प्रदान करते हए क्षेत्र पर आपकी नियुक्ति की जहां अाप जीवन के अन्त तक कार्यरत रहे । यहां रहते हुए अापने क्षेत्र के तत्कालीन मंत्री स्व० श्री रामचन्द्र जी खिन्दूका की प्रेरणा से 'युक्त्यनुशासन' का हिन्दी अनुवाद किया जो दो भागों में प्रकाशित हक्षा है। ग्राचार्य समन्तभद्र की 'आप्लमीमांसा' नामक ग्रंथ की विस्तृत टीका भी यापने लिखी जो १०५क्षल्लक शीतलसागरजो द्वारा सम्पादि: बार शालिवो ए दिशा पर जैन संस्थान शांतितीर नगर श्रीमहाबीर जी द्वारा वी.नि. सावत २४६६ में मुद्रित कराया जा सका है। आपको एक अन्य स्वतंत्र रचना 'वचनदूतम्' है जो जैन विद्या संस्थान श्रीमहावीरजी द्वारा उन द्वारा कृत हिन्दी अनुवाद सहित दो भागों में प्रकाशित किया गया है। जब तक आप जीवित रहे अनवरत साहित्य सेवा में लीन रहे। 'बर्धमानचम्पु सानवाद जो पाठकों के हाथों में है इन्होंने ७८ वर्ष की आयु में लिखा था, यह इस बात का प्रमाण है।
अपनी धार्मिक, साहित्यिक तथा सामाजिक सेवाओं के कारण इन्दौर में एलाचार्य मुनिश्री १०८ श्री विद्यानन्दजी तथा देहली में मुनिश्री १०८ श्री ग्रानन्दसागरजी के सानिध्य में समाज द्वारा सम्मानित हुए । "प्राप्तमीमांसा' को टीका पर इनको न्याय वानस्पति की पदबी से अलंकृत किया गया। दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी को प्रबन्धकारिणी कमेटी ने भी ग्रापकी सेवाओं के लिए आको यथोचित सम्मान एवं पुरस्कार प्रदान किया । राजस्थान के राज्यपाल महोदय ने भी संस्कृत दिवस पर प्रायोजित एक समारोह में सस्तात सेवाग्रा के लिए आपको प्रशस्तिपत्र एवं पुरस्कार प्रदान किये ।
दिनांक ५.८.८६ का ८३ वर्ष की प्रायु में हृदय की गति रुक जाने से अापका स्वर्गवास हो गया ।
अाप अपने पीछे अपनी पत्नी, चार पुत्र तथा चार पुत्रियां छोड़ गये हैं।