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वर्धमानघम्पूः
इत्थं स्वां मनसि विनिन्दती बन्दना याबदास्ते ताबदेव तीर्थकरो महाबीरस्तव द्वारि समागत्यातिष्ठत् । नवधाभक्ति विधाय सा तस्मै वातगुणमंहिता भक्त्यतिरेकानुक्तिनसाऽऽहारमवात् ।
प्रभूयस्तस्मिन्नेव क्षणे देवः संपावितानि शुभकार्यतासूचकानि रत्नवृष्ट्यादीनि पंचाश्चर्यारिग । चन्दनाया जाता सतीत्वपरीक्षा । सतीत्वपरोक्षायां समुत्तीर्णायास्तस्या महत्वमपि जनतायाः समक्षमनायासेनानया प्रकटितं प्रथितं चेतस्तत सभोरणेन प्रसार्यमाणः कस्तूरिकाया प्रामोव इव झटिति ।
खंबनेयमासीद्राज्ञश्चेटक स्यंव तनुजा। एकदेयं यदोपवने दोलायां बोलयन्त्यासीत्तदा तत्रागतेन फेनापि विद्याधरेण तबीयरूपलावष्याकृष्टमानसेनेयमाहुता। संयोगवशात्तत्प्रपंचतो विनिर्मुक्तेयं विधे विपाकाहाशी
चन्दना इस प्रकार अपने मन में निंदा कर ही रही थी कि इतने में महावीर द्वार पर लाकर खड़े हो गये । चन्दना ने नवधा भक्ति की और उन्हें प्राहार दिया। उसी समय देवों ने शुभकार्यता के सूचक रत्नवृष्टि आदि के पांच आश्चर्य किये। इस तरह चन्दना के सतीत्व की परीक्षा हुई । सतीत्व की परीक्षा में उत्तीर्ण हुई उसका महत्त्व अनायास ही इसके द्वारा प्रकट हो गया और जसे हवा कस्तुरी की सूगध को चारों ओर फैला देती है उसी प्रकार इसके प्रभाव ने उसे चारों तरफ फैला दिया।
चन्दना राजा चेटक की पुत्री थी । एक दिन की बात है कि जब यह उद्यान में भला झल रही थी तब वहां आये किसी विद्याधर ने इसके अनुपम रूपलावण्य को देखा और उससे आकृष्ट होकर उसने इसत्रा हरण कर लिया । संयोगवश ऐसा हुआ कि यह उसके प्रपंच से छूटकर इस श्रेष्ठी के यहां अशुभकर्म के उदय में दासी बनकर रहने लगी ।